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अशोक भगत

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मशरूम उत्पादन में अव्वल बन सकता है झारखंड, पढ़ें अशोक भगत का लेख

mushroom production : अधिकृत आंकड़ों के अनुसार, पूरे विश्व में 15 लाख कवक हैं, जिसमें से केवल 11 लाख कवक का ही अब तक अध्ययन हो पाया है. उनमें से 14,000 कवक मशरूम हैं, जिनमें से मात्र 3,000 ही खाने योग्य है. अमेरिका और यूरोपीय देशों ने केवल बटन मशरूम पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है.

अपने मूल स्वरूप में लागू हो पेसा कानून

Pesa Act : यहां प्रश्न उठता है कि क्या पांचवीं सूची के अन्य राज्यों की तरह झारखंड का पेसा कानून भी नख-दंत विहीन होगा, या फिर भारतीय संसद में पारित अधिनियम के अनुरूप और आदिवासी संस्कृति के संरक्षक के रूप में इसे लागू किया जायेगा?

खेती मजबूत, तो अर्थव्यवस्था सुदृढ़, पढ़ें, पद्मश्री अशोक भगत का आलेख

Indian Economy : एक स्वतंत्र एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि देश में राष्ट्रीय आय का लगभग 28 फीसदी कृषि से प्राप्त होता है.

आदिवासियों के संरक्षण के लिए जरूरी है पेसा

पेसा कानून में आदिवासी समुदायों के लिए विकास परियोजनाओं के कारण किसी भी विस्थापन में सख्त पुनर्वास और मुआवजे का प्रावधान है.

आदिवासी जमीन की हाे हिफाजत

झारखंड बनने के 24 वर्षों में हर सरकार ने राज्य के विकास के लिए कुछ न कुछ जरूर किया है, पर झारखंड की भूमि समस्या यथावत बनी हुई है. इसके कारण केवल रांची का यदि आप अपराध रिकॉर्ड देखें, तो दंग रह जायेंगे. जमीनी विवाद और घोटालों के कारण रांची में लगभग हर सप्ताह किसी की हत्या जरूर होती है.

जलवायु परिवर्तन से जल संकट का खतरा

यह सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में लगभग 4000 अरब क्यूबिक मीटर जल वर्षा से प्राप्त होता है, जिसमें से लगभग 2000 क्यूबिक मीटर जल नदी, झील, जलाशय और हिमनदों में उपलब्ध है.

मतदान के प्रति विश्वास बनाये रखना जरूरी

हमारे देश में अमूमन पांच वर्ष पर संसदीय चुनाव होता है. मध्यावधि चुनाव भी होते रहे हैं. इसी चुनाव से देश की दिशा और दशा तय होती है. चुनाव में हिस्सा लेना और प्रत्यक्ष रूप से मतदान करना हमारी न केवल राष्ट्रीय जिम्मेदारी है, अपितु संवैधानिक कर्तव्य भी है.

जैव विविधता का संरक्षण भी है मधुमक्खी पालन

मधुमक्खी पालन ग्रामीण गरीब, भूमिहीन मजदूर एवं ग्रामीण युवाओं के लिए स्वरोजगार एवं अतिरिक्त आय का प्रमुख साधन बन सकता है. सरल होने के कारण अशिक्षित व्यक्ति भी इसे आसानी से कर सकता है.

खाद्यान्न समस्या का समाधान है श्रीअन्न

अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 को जन आंदोलन बनाने के साथ-साथ भारत को वैश्विक पोषक अनाज हब के रूप मे स्थापित करने की दिशा में प्रयास हो रहे हैं. भारत सरकार इस दिशा में पहले से काम कर रही है
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