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भारतीय अर्थतंत्र के पीछे चीन की चाल

किस को और किस दर पर भारतीय बैंकों द्वारा ऋण दिया जायेगा, क्या उसे विदेश रेटिंग एजेंसियां तय करेंगी? निजी विदेशी कंपनियां भारत में क्रेडिट की नियामक कैसे बन सकती हैं? चीन और रूस घरेलू स्तर पर इन विदेशी एजेंसियों को संचालन की अनुमति नहीं देते.

डॉ निशिकांत दुबे, भाजपा सांसद

delhi@prabhatkhabar.in

मूडीज द्वारा जारी नयी सॉवरेन रेटिंग भारत सरकार और विभिन्न कंपनियों के लिए निवेश आकर्षित करने में मुश्किलें खड़ी कर रही है, क्योंकि मौजूदा कर्ज को दुनिया जोखिम के रूप में देखने लगती है और अधिक ऋण देने में आशंकित रहती है. सॉवरेन रेटिंग के उच्च रहने से कर्ज पर ब्याज दर कम या यथोचित रहती है, जिससे सरकार और उद्योग अधिक उधार ले सकते हैं. मूडीज की हालिया रेटिंग भविष्य के ऋणों पर ब्याज बढ़ायेगी. इससे भारत का आर्थिक संकट और गहरा सकता है.

मूडीज ने कई आधारभूत उद्योगों और भारतीय बैंकों की भी रेटिंग घटायी है, जिसकी वजह से उन्हें ऋण हासिल करने और नयी परियोजनाओं को शुरू करने में दिक्कत होगी. यह भारत के आर्थिक सुधार प्रयासों में बाधक है. रेटिंग एजेंसी का उद्देश्य विभिन्न प्रकार के ऋणों पर निवेशकों को भरोसेमंद जानकारी उपलब्ध कराना होता है, लेकिन ये रेटिंग एजेंसियां गलत बयानों और बैंकों की भ्रामक रेटिंग जारी कर भारत में वित्तीय संकट को बढ़ा रही हैं.

परिणामस्वरूप, रेटिंग एजेंसियां भारतीय अर्थव्यवस्था की नियामक बन चुकी हैं और सामानांतर शक्ति से अपने मुताबिक बाजार में हेरफेर कर रही हैं. अमेरिका स्थिति प्रमुख रेटिंग एजेंसियों पर चीनी सरकार और निवेशकों का मालिकाना है. फर्जी सॉवरेन रेटिंग के माध्यम से चीनी भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं और दक्षिण एथियाई राजनीति में अपना दबदबा बढ़ाते हैं.

पूर्व में मूडीज का भारत की वित्तीय स्थिति और आर्थिक भविष्य को लेकर आशावादी रुख था, लेकिन हाल के वर्षों में मूडीज ने भारत की सॉवरेन रेटिंग को घटा दिया और आगे आर्थिक उत्पादकता को कम कर दिया. इन रेटिंग एजेंसियों ने हमारे देश की वास्तविक वित्तीय मजबूती, जैसे जीडीपी के अनुपात में कम ऋण, प्रधानमंत्री मोदी के छह साल के नेतृत्व में विकास, युवा आबादी, आईटी कार्यबल आदि का सही आकलन नहीं किया है.

ये तीनों ही रेटिंग एजेंसियां हमारे सॉवरेन ऋण की रेटिंग करते समय 50 प्रतिशत अधिभार वामपंथी पश्चिमी मीडिया की नकारात्मक और फर्जी खबरों के आधार पर देती हैं. स्थानीय सहयोगियों के माध्यम से संचालित ये कंपनियां हमारे यहां से लाखों डॉलर कमाती हैं. देश के सॉवरेन रेटिंग के मामले में ये कंपनियां भगवान की तरह काम और बर्ताव करती हैं और हमारे देश को तीसरे दर्जें का मानती हैं. क्या स्टैंडर्ड एंड पुअर प्रमोटर और क्रिसिल के मुख्य शेयरधारक किसी ऐसे देश का नाम दे सकते हैं, जहां वे भारत से अधिक पैसा बनाते हों?

वे नहीं दे सकते. रेटिंग एजेंसियों के लिए भारत सबसे बड़ा लाभदायक बाजार बना हुआ है, लेकिन वे भारत की रेटिंग सुधारने के लिए तैयार नहीं हैं और उसे गिराने की चेतावनी देती हैं. तीनों प्रमुख वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी-स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी), मूडीज और फिच रेटिंग अमेरिका से संचालित हैं. यूपीए सरकार द्वारा रेटिंग को अनिवार्य किया गया था, क्योंकि वे देश के वित्तीय और आर्थिक आंकड़ों को जुटाने और संग्रहीत करने के प्रति अनिच्छुक थे.

क्रेडिट रेंटिग को अनिवार्य बनाने के पीछे दूसरा बचाव था कि बीएएसइएल और आइएफआरएफ के मानकों के अनुरूप वित्त बाजारों का विकास न हो पाना. लेकिन, उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी के छह साल के विकासवादी शासन में पर्याप्त आंकड़े इकट्ठा किये गये और रेटिंग एजेंसियों पर निर्भरता कम हुई है. किसको और किस दर पर भारतीय बैंकों द्वारा ऋण दिया जायेगा, क्या उसे विदेश रेटिंग एजेंसियां तय करेंगी? निजी विदेशी कंपनियां भारत में क्रेडिट की नियामक कैसे बन सकती हैं? चीन और रूस घरेलू स्तर पर इन विदेशी एजेंसियों को संचालन की अनुमति नहीं देते.

वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद अमेरिका ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के पहले संशोधन अधिकारों को रद कर दिया और डॉड फ्रैंक अधिनियम के तहत, गलत बयान और निवेशकों को भ्रमित करने पर दंड का प्रावधान किया गया. ऐसा प्रावधान भारत सरकार को भी बनाना चाहिए. दूसरा यह कि विदेशी रेटिंग एजेंसियों को ऋण-जोखिम विश्लेषण के नियामक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. मेरा सुझाव है कि हमें अपनी भारतीय रेटिंग एजेंसी को बढ़ावा देना चाहिए.

किसी रेटिंग एजेंसी से वैध रेटिंग प्राप्त करने हेतु अपनी भारतीय रेटिंग एजेंसियों के लिए बेहतर माहौल प्रदान करना होगा. जब तक भारत में स्थानीय स्तर पर विश्वसनीय और बड़ी रेटिंग एजेंसी विकसित नहीं हो जाती, तब तक रेटिंग एजेंसियों के नियमन के लिए कुछ अहम कदम उठाये जाने चाहिए. पहला, इन विदेशी एजेंसियों की रिपोर्ट के लिए उनके भारतीय शाखा की जिम्मेदारी तय हो. दूसरा, बैंकों से उधार हेतु भारतीय इकाइयों के लिए इन विदेशी एजेंसियों से रेटिंग अनिवार्यता खत्म हो. रेटिंग की अनिवार्यता केवल सार्वजनिक/ मार्केट फंड लेने तक ही हो.

तीसरा, बाह्य रेटिंग समिति की तिथि, समय और सदस्यों के नाम का जिक्र हो. चौथा, रेटिंग मॉडल की जानकारी वेबसाइट पर साझा की जाये, जिससे लोगों को प्रक्रिया की जानकारी मिल सके. सेबी और आरबीआइ को सौंपे जानेवाले वर्तमान रेटिंग मॉडल में कई प्रकार की विसंगतियां हैं. समय की मांग है कि इन विदेशी रेटिंग एजेंसियों पर लगाम लगायी जाये, जिससे कि भारत, भारतीय व्यापार और नागरिकों को सुरक्षित किया जा सके. इन विदेशी कंपनियों ने हमसे बहुत कुछ लिया है.

(ये लेखक के निजी िवचार हैं)

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