27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

भारतीय उत्पादों के लिए मौके

राष्ट्रीय आर्थिकी के विकास में लघु एवं मध्यम व्यवसायों की उल्लेखनीय भूमिका है, क्योंकि कुल निर्यात में इनकी भागीदारी 45 प्रतिशत से अधिक है.

हाल के कुछ वर्षों में आर्थिक प्रक्षेपवक्र की मंद गति से समय रहते यह संकेत मिला है कि सर्विस-आधारित आर्थिक मॉडल भारत के लिए अब पर्याप्त नहीं है. यानी जिस सर्विस सेक्टर की अगुवाई में भारत बीते दो दशकों में 2.5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुंचा, अब वह पांच ट्रिलियन डॉलर के अगले मुकाम के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे में महत्वपूर्ण है कि कृषि और सेवा के साथ-साथ मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की भी गति तीव्र हो.

आर्थिक विकास और सामाजिक-राजनीतिक स्थिरता के लिए 2030 तक 10 करोड़ नयी नौकरियों का सृजन जरूरी है, इसके लिए मैनुफैक्चरिंग सेक्टर को विकास के इंजन के रूप में तब्दील करना होगा. बीमार विनिर्माण क्षेत्र के सुधार और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत की भागीदारी को मजबूत करने के लिए ही प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मेक इन इंडिया की पहल की गयी. अब इसके उत्साहजनक नतीजे भी दिखने लगे हैं.

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ई-बे की ‘भारत लघु ऑनलाइन व्यापार रिपोर्ट-2021’ के अनुसार, इस प्लेटफॉर्म पर भारतीय उद्यमी देश में निर्मित उत्पादों को हर साल औसतन 42 देशों में निर्यात कर रहे हैं. भारतीय उत्पादों की निर्यात सूची में मुख्य रूप से अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी जैसे देश शामिल हैं. भारत से आभूषण, हीरे व रत्न, गृह सज्जा सामान, आयुर्वेद से संबंधित सामान, ऑटो पार्ट्स और अन्य कई प्रकार के उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है.

इसमें दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य अग्रणी भूमिका में हैं और इन राज्यों के उद्यमी इस ऑनलाइन माध्यम का फायदा उठा रहे हैं. राष्ट्रीय आर्थिकी के विकास में लघु एवं मध्यम व्यवसायों की उल्लेखनीय भूमिका है, क्योंकि कुल निर्यात में इनकी भागीदारी 45 प्रतिशत से अधिक है. वर्तमान में तीन ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए जरूरी है कि निर्यात क्षेत्र अपनी अहम भागीदारी अदा करे.

निर्यात इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए कई स्तरों पर मदद की भी आ‌वश्यकता है. महत्वाकांक्षा और गुंजाइश दोनों ही मामलों में मेक इन इंडिया अभी तक सीमित रहा है. टैक्स ब्रेक, ढांचागत समर्थन और अन्य संरचनात्मक सहयोग के बजाय घरेलू उद्योगों को संरक्षण देने हेतु अभी तक टैरिफ बाधाओं को दूर करने जैसे प्रयास होते रहे हैं. बदलते वक्त में तकनीकी समर्थन के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर शोध एवं विकास के लिए निवेश को बढ़ावा देने की आवश्यकता है.

भारत का टैरिफ आधारित दृष्टिकोण पुरानी औद्योगिक नीतियों के पदचिह्नों पर चलने की तरह है. आज के दौर में औद्योगिक उत्पादन में शीर्ष स्थान हेतु प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक है कि ऐसी समग्र नीतियां बनायी और अपनायी जायें, जो आपूर्ति शृंखला की जटिलताओं का भी समाधान निकालती हों. साथ ही, देश में उन उद्यमों को चिह्नित कर सहयोग प्रदान किया जाये, जहां उत्पादन और निर्यात की असीम संभावनाएं मौजूद हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें