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इराक युद्ध के सबक
इराक युद्ध की जांच कर रही चिलकॉट कमिटी ने सात वर्षों के लंबे इंतजार के बाद अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इसमें कहा गया है कि अमेरिका द्वारा इराक पर किये गये हमले में ब्रिटेन की सहभागिता अपुष्ट तथ्यों पर आधारित थी और युद्ध से पहले शांतिपूर्ण कूटनीतिक विकल्पों पर विचार नहीं किया गया था. […]
इराक युद्ध की जांच कर रही चिलकॉट कमिटी ने सात वर्षों के लंबे इंतजार के बाद अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इसमें कहा गया है कि अमेरिका द्वारा इराक पर किये गये हमले में ब्रिटेन की सहभागिता अपुष्ट तथ्यों पर आधारित थी और युद्ध से पहले शांतिपूर्ण कूटनीतिक विकल्पों पर विचार नहीं किया गया था.
तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने पूर्व इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन से संभावित खतरों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया था, जबकि वास्तव में ऐसी आशंकाएं पूरी तरह निराधार थीं. रिपोर्ट में यह दिलचस्प तथ्य भी सामने आया है कि युद्ध में शामिल होने के ब्लेयर के निर्णय का कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं है.
सबूतों से पता चलता है कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री पूरी तरह से अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के प्रभाव में थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय जनमत की उपेक्षा करते हुए हमले का फैसला किया था. इस युद्ध में सैनिकों समेत ढाई लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.
घायलों, विकलांगों और मानसिक आघात झेल रहे सैनिकों और नागरिकों की संख्या भी बहुत बड़ी है. रिपोर्ट में यह भी रेखांकित किया गया है कि ब्लेयर को आगाह किया गया था कि इस हमले की एक परिणति गृह युद्ध और आतंक के रूप में हो सकती है, लेकिन उन्होंने इस संबंध में कोई ठोस पहल नहीं की. युद्ध में अकेले ब्रिटेन का 11.83 अरब यूरो खर्च हुआ है, लेकिन युद्ध में जाने से पहले खर्च का कोई आकलन मंत्रियों से साझा नहीं किया गया था. चिलकॉट रिपोर्ट से पहले भी कई रिपोर्ट और अध्ययन सामने आ चुके हैं, जो बताते हैं कि इराक पर हमला अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानवाधिकार का खुला उल्लंघन था.
इस रिपोर्ट के आधार पर ब्लेयर या बुश पर भले ही कोई आपराधिक मुकदमा न चले, लेकिन इतिहास इस सच्चाई को दर्ज कर चुका है कि किस तरह सत्ता के शीर्ष पर बैठे दो लोगों की गलती का खामियाजा इराक और अरब समेत पूरी दुनिया को भुगतना पड़ा है. इराक तो लगभग बर्बाद हो चुका है और अरब जगत घोर अशांति के दौर से गुजर रहा है. इस युद्ध से पनपे आतंकवाद के खतरनाक साये हर देश में मंडरा रहे हैं.
निहित स्वार्थों, व्यक्तिगत कुंठाओं और सनक से पैदा होनेवाले युद्ध, हमले और हिंसा से मानवता लंबे समय तक कराहती रहती है. इराक और ब्रिटेन की जनता से ब्लेयर को अपनी गलती की माफी मांगनी चाहिए, ताकि उनके घावों को कुछ मरहम मिल सके. इराक प्रकरण का मुख्य सबक यही है कि वैश्विक राजनीतिक नेतृत्व को ऐसे फैसले बहुत सोच-विचार कर और अंतरराष्ट्रीय कायदों की बुनियाद पर ही लेने चाहिए.
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