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धनाढ्य-भव्यता में संस्कृति कहां!

उर्मिलेश वरिष्ठ पत्रकार यह बात बिल्कुल समझ में नहीं आती कि आधुनिक दौर के हमारे धर्माचार्य या बाबा अपने जीवन या कर्म में सहजता, शालीनता और सादगी जैसे मूल्यों को अपनाने के बजाय राजाओं-महाराजाओं, सामंतों या नवधनाढ्यों जैसी महंगी चमक-दमक, विराटता या भव्यता क्यों पसंद करने लगे हैं? क्या श्री श्री रविशंकर का विश्व सांस्कृतिक […]

उर्मिलेश
वरिष्ठ पत्रकार
यह बात बिल्कुल समझ में नहीं आती कि आधुनिक दौर के हमारे धर्माचार्य या बाबा अपने जीवन या कर्म में सहजता, शालीनता और सादगी जैसे मूल्यों को अपनाने के बजाय राजाओं-महाराजाओं, सामंतों या नवधनाढ्यों जैसी महंगी चमक-दमक, विराटता या भव्यता क्यों पसंद करने लगे हैं?
क्या श्री श्री रविशंकर का विश्व सांस्कृतिक महोत्सव झारखंड, बिहार, यूपी, कनार्टक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश या हरियाणा के किसी खाली इलाके में नहीं आयोजित हो सकता था? आखिर दिल्ली में ही क्यों, जहां पहले से ही इस कदर ट्रैफिक-जाम और बढ़ते प्रदूषण ने राजधानी के जीवन को नारकीय बना रखा है! यदि दिल्ली में ही करने की बाध्यता हो तो फिर इतना बड़ा आयोजन यमुना के खादर में ही क्यों, रामलीला मैदान या दिल्ली के बाहरी इलाके में क्यों नहीं? पहले से ही बरबाद हो रही यमुना पर 35 लाख अतिरिक्त आबादी का नया बोझ क्यों?
यह महोत्सव यमुना किनारे लगभग एक हजार एकड़ जमीन घेर कर हो रहा है. इसका मंच ही 7 एकड़ में बना है. 35,000 कलाकार यहां अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी भी खास मंच से महोत्सव को संबोधित करेंगे. यमुना पर विवादास्पद और गैरकानूनी निर्माण के मद्देनजर राष्ट्रपति ने फिलहाल महोत्सव को संबोधित करने के अपने कार्यक्रम को रद्द कर दिया है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अवैध निर्माण और नियमों को नजरंदाज कर सरकारी विभागों द्वारा दी गयी मंजूरी पर महोत्सव के आयोजकों और कुछ सरकारी विभागों पर जुर्माना ठोंका है.
ऐसे में आयोजकों को महोत्सव की तारीख बदल कर किसी ऐसे स्थान की तलाश करनी चाहिए थी, जहां प्रकृति और पर्यावरण का कम विनाश हो! लेकिन संस्कृति के ‘उद्धारकों’ ने ऐसी उदार सोच का परिचय नहीं दिया. यहां तो महोत्सव के आयोजन स्थल पर सवाल उठाती याचिका दायर करनेवालों को धमकियां दी जा रही हैं. क्या संस्कृति और धमकी का भी कोई रिश्ता है?
एक तरफ इतना जन-विरोध, न्यायाधिकरण की प्रतिकूल टिप्पणी, अवैध निर्माण और सरकारी एजेंसियों के कानून-विरोधी रवैये पर जुर्माना तो दूसरी तरफ संबद्ध सरकारी मंत्रालयों-विभागों के निर्देश पर महोत्सव स्थल पर हो रहे निर्माण को तेज गति देने के लिए भारतीय सेना के जवान, इंजीनियर्स और तकनीशियन तक लगा दिये गये हैं.
दिलचस्प बात कि इस महा-आयोजन में सक्रिय सहयोग के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार के मतभेद मानो मिट से गये हैं. दोनों की एजेंसियां यमुना किनारे जारी अवैध निर्माण और अतिक्रमण के इस घोर असंस्कृत-अभियान में शामिल दिख रही हैं.
अब बड़े-बड़े बाबाओं को सेना-पुलिस-अर्द्धसैनिक बलों की तरफ से सुरक्षा मुहैया कराया जा रहा है. सत्ता, बाबाओं और धर्म-संस्कृति के रिश्तों का यह नया पहलू है. बाबा रामेदव को साल भर पहले जेड-श्रेणी की सुरक्षा मिली. अब अर्द्धसैनिक बल उनके योग आश्रम और फूड पार्क की रक्षा करेंगे. भारतीय लोकतंत्र में यह सब पहली बार देखा जा रहा है!
ऐसे आयोजनों का बहुत डरावना पहलू है पर्यावरण विनाश से नगर संस्कृति पर बढ़ता खतरा. हमने उत्तराखंड में 2013 की, श्रीनगर में 2014 की और चेन्नई में 2015 की भीषण विभीषिका को इतना जल्दी भुला दिया है. ये विनाशलीलाएं अवैध निर्माण, झीलों, नदियों के जल-प्रवाह क्षेत्र में हुए अतिक्रमण या ‘वाटरबाॅडीज’ के विनाश के चलते ही घटित हुईं.
बीते कई सालों से दिल्ली की यमुना पर कहर ढाया जा रहा है. पहले अक्षरधाम का निर्माण, फिर राष्ट्रमंडल खेलों के परिसर और फ्लैट्स का निर्माण और अब विश्व सांस्कृतिक महोत्सव. अक्षरधाम के लिए यमुना के बाढ़ व खादर क्षेत्र में नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए जमीन दी गयी. अवैध भूमि आवंटन और निर्माण को लेकर संसद में बार-बार सवाल उठने के बावजूद तत्कालीन एनडीए सरकार ने अपने फैसले को वापस नहीं लिया. अब एनडीए की दूसरी सरकार ने श्री श्री रविशंकर के निजी सांस्कृतिक आयोजन के लिए सारे कायदे-कानून ताक पर रख दिये हैं.
एनजीटी ने 5 करोड़ के जुर्माने के साथ आयोजन जारी रखने का विवादास्पद फैसला दिया है. हालांकि, श्री श्री रविशंकर ने कहा है कि वे भले जेल चले जायें, लेकिन जुर्माना नहीं देंगे. उनका यह बयान बताता है कि वह अपने को संविधान और न्याय-व्यवस्था से ऊपर या परे मानते हैं. इस तरह का दंभ आध्यात्मिक या सांस्कृतिक कैसे हो सकता है? आत्मालोचना के बजाय हठधर्मिता दिखाते हुए क्या वे प्रकृति, पर्यावरण, नदियों, झीलों के अविरल प्रवाह और हमारी पूरी संस्कृति को ही चुनौती नहीं दे रहे हैं?

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