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सिर्फ मंथन ही नहीं, अमल भी करें

पर्यावरण क्षरण छोटा-सा शब्द है, मगर समस्या बड़ी है. संकट बड़ा है, तो सवाल भी बड़े होंगे. इसके समाधान के लिए दुनियाभर के लोग एकत्र होते हैं, बातचीत करते हैं, फिर अपने वतन लौट जाते हैं. अक्सर देखा जाता है कि सभा में कही गयी बात घर में ही सभी सदस्यों पर अमूमन लागू नहीं […]

पर्यावरण क्षरण छोटा-सा शब्द है, मगर समस्या बड़ी है. संकट बड़ा है, तो सवाल भी बड़े होंगे. इसके समाधान के लिए दुनियाभर के लोग एकत्र होते हैं, बातचीत करते हैं, फिर अपने वतन लौट जाते हैं.
अक्सर देखा जाता है कि सभा में कही गयी बात घर में ही सभी सदस्यों पर अमूमन लागू नहीं होती. कारण है कि जो लोग सामूहिक समस्या पर किसी सभा में ढिंढोरा पीट कर आते हैं, वे निजी मामलों में स्वार्थी हो जाते हैं. वे उन्हीं कामों को अक्सर करते हुए देखे जाते हैं, जिसकी रोकथाम के लिए सभा में लंबा-चौड़ा भाषण देकर आये हैं. अभी हाल ही में आयोजित पेरिस सम्मेलन में विश्व नेताओं ने लंबी-लंबी बातें और शर्तें एक-दूसरे के समक्ष रखे.
लेकिन, किसी ने नहीं कहा कि इन शर्तों पर सबसे पहले पहल हमारे देश से ही शुरू होगी. अगर पर्यावरण क्षरण इसी तरह होता रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब धरती पर आदमी को पानी, हवा और भोजन के लिए तरसना पड़े. इस पर गहन मंथन की जरूरत है.
– मनसा राम महतो, असुरा, सरायकेला

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