सारी वास्तविकताओं को ध्यान में रख कर अगर परिभाषा बनायी जाये, तो सड़क नाम है उस सरकारी संपत्ति का, जो अन्य सारी संपत्तियों को आपस में जोड़ने का काम करती है. जिस जगह या जिस चीज पर सरकार पैसा लगा दे, वह जगह या चीज सरकारी हो जाती है. जैसे सरकार कला या साहित्य को ईनाम देती है, तो सरकार ही तय करती है कि कितने रुपये दिये जाएं. या वह कोई सम्मेलन वगैरह आयोजित करती है, तो वही तय करती है कि उसमें किसे बुलाया जाये.
कलाकार या साहित्यकार के कद से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता. सड़क का मामला भी कुछ ऐसा ही है. सरकार के लिए सरकारी लोगों द्वारा सरकारी काम करने के लिए काम कर रहे सरकारी दफ्तरों को जोड़नेवाली सरकारी सड़क पर हम-आप लोग जो चल-फिर लेते हैं, तो यह भूमि पर हमारे उपजने का ईनाम ही है. हमारी कद-काठी या जरूरतों से इन सड़कों का कोई संबंध हो, यह सोचने का भी हमें अधिकार नहीं.
सड़क आखिर बनती कैसे है? बड़ा दार्शनिक सवाल है यह. उत्तर शायद यह होगा कि बहुत सारे गड्ढे लो, उन्हें आपस में मिला दो, सड़क बन जायेगी. और इसीलिए कुछ समय बाद उसमें फिर से गड्ढे हो जाते हैं. सड़क बनानेवाले गड्ढों को फिर जोड़ देते हैं. इस प्रकार गड्ढों को सड़क बनाने और सड़कों को गड्ढे बनाने के कारण हमारे इंजीनियरों का दुनियाभर में नाम हो गया है. दुनिया के कई देश हमसे सड़क बनाने की टेक्नोलॉजी लेना चाहते हैं. वे हमसे इंजीनियरिंग के गुर जान लेना चाहते हैं, लेकिन वे यह नहीं जान पाते कि इस देश की सड़कें इंजीनियर नहीं, ठेकेदार बनाते हैं.
सड़क सरकारी है, यह समझने के लिए इतना ही याद कर लेना काफी है कि हम-आप सब उसका जी भर कर दुरुपयोग करते हैं. सड़क के साथ भी वही सब होता है, जो सरकार के साथ होता है. सड़क बनाने का एक विभाग होता है, जो सड़क ही बनाता है. कुछ लोगों में यह भ्रम व्याप्त है कि चूंकि सड़क है, इसलिए विभाग है, और कुछ लोगों में यह भ्रम कि चूंकि विभाग है, इसलिए सड़क है.
सड़क सरकारी है, इसलिए इससे कर्मचारी जुड़े हैं, फाइलें हैं, कार-बंगले हैं, उनके लिए अफसर हैं और अफसरों के प्रमोशन हैं. सड़क सरकारी है, इसलिए इससे भ्रष्टाचार जुड़ा है, दलाल और ठेकेदार जुड़े हैं. तारीफ करने के लहजे में कहा जा सकता है कि सड़क नाम है उस भ्रष्टाचार का, जिसके माध्यम से सारे भ्रष्टाचार एक-दूसरे से जुड़े हैं.
पहले सड़क बनी या गड्ढा हुआ? मुर्गी और अंडे की तर्ज के इस शाश्वत सवाल का जवाब उन हातिमताई ठेकेदारों के पास है, जो सड़क बनाते हुए ही जानते हैं कि इस पर कब, कहां-कहां, कितने गड्ढे बन जायेंगे. बल्कि, अंडे बराबर मोती की तलाश में निकले ठेकेदार तो यह व्यवस्था रखते हैं कि इधर सड़क बने और उधर गड्ढे हों, ताकि उन्हें फिर मरम्मत करने का ठेका मिले. अगर सड़क की मरम्मत न हो, तो दुनिया को अपनी यह राय बदलनी पड़ जाये कि हिंदुस्तानी श्रेष्ठ मरम्मत-कारीगर होते हैं.
और अंत में…
सड़क नाम है उस करिश्मे का, जिसके माध्यम से भगवान इनसान को स्वर्ग और नरक का बोध कराता है.
डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
drsureshkant@gmail.com