यह स्थिति अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी है और भारत समेत दुनिया के अन्य विकासशील और गरीब देशों में भी. औरतों की बेहतरी के लिए समाज और शासन में उनकी समुचित भागीदारी आवश्यक है. ऐसा किये बगैर सभ्यता के सर्वांगीण विकास और समृद्धि को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है.
विज्ञान, कला, राजनीति, अर्थव्यवस्था, वाणिज्य, प्रशासन, सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी क्षमता और उपयोगिता को बार-बार सिद्ध किया है. इस पृष्ठभूमि में अमेरिकी सेना का यह निर्णय बराबरी के प्रयासों के लिए निश्चित ही उत्साहजनक है. भारतीय सेना में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, पर इसकी गति बहुत धीमी है. वर्ष 1992 में महिलाओं को सेना में प्रवेश की अनुमति मिली. उस समय 50 अधिकारी पदों के लिए 1,803 आवेदन आये थे. इन 22 वर्षों में महिला अधिकारियों की संख्या 1,300 हो गयी, जो कुल अधिकारी पदों का मात्र चार फीसदी ही है.
नौसेना में 358 महिला अधिकारी हैं, जो कि अधिकारियों की कुल संख्या का पांच फीसदी है. वायु सेना में करीब 1,300 महिला अधिकारी हैं. सीमा सुरक्षा बल में ऑपरेशन में महिलाओं को 2013 में शामिल होने की अनुमति मिली. बहरहाल, संतोष की बात है कि अब 340 महिला अधिकारियों को सशस्त्र सेना में स्थायी पदस्थापन दिया गया है और इस वर्ष वायु सेना में उन्हें लड़ाकू विमानों के चालक के रूप में भर्ती करने का निर्णय भी किया गया है. हाल में नौसेना प्रमुख ने कहा कि सेना के इस अंग में महिलाओं की नियुक्ति का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है. प्रादेशिक सेना में उनके प्रवेश की अनुमति के लिए एक जनहित याचिका दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित है. आशा है कि जल्दी ही अमेरिकी सेना की तरह हमारी सेनाओं में भी महिलाएं सीमाओं पर सुरक्षा के लिए अगली पंक्ति में खड़ी दिखेंगी.