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कश्मीर में मोदी
श्रीनगर के शेरे-कश्मीर स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रविवार को प्रस्तावित संबोधन को गत दिसंबर में इसी मैदान पर उनके द्वारा कश्मीर की जनता को दिये गये आश्वासन की कसौटी पर परखा जायेगा. तब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीर-दृष्टि ‘इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत’ को पूरा करने का भरोसा दिया था. मुख्यमंत्री […]
श्रीनगर के शेरे-कश्मीर स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रविवार को प्रस्तावित संबोधन को गत दिसंबर में इसी मैदान पर उनके द्वारा कश्मीर की जनता को दिये गये आश्वासन की कसौटी पर परखा जायेगा.
तब उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कश्मीर-दृष्टि ‘इंसानियत, कश्मीरियत और जम्हूरियत’ को पूरा करने का भरोसा दिया था. मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के इस बयान से राज्य की उम्मीदें भी झलकती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी तरक्की के लिए काम कर रहे हैं.
वाजपेयी के कार्यकाल में भी सईद मुख्यमंत्री थे. तब केंद्र और राज्य सरकारें कश्मीर में सकारात्मक माहौल बनाने में काफी हद तक सफल रही थीं. पूर्व मुख्यमंत्री और वाजपेयी सरकार में सहयोगी रहे फारुख अब्दुल्ला ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वाजपेयी के ‘इंसानियत के दायरे में चलने के’ सिद्धांत पर अमल करने का निवेदन किया है. खबरों के अनुसार, इस बार प्रधानमंत्री विकास के लिए धनराशि के साथ बड़े राहत पैकेज की घोषणा कर सकते हैं. कश्मीर के दोनों हिस्सों के बीच व्यापार और आवाजाही को सुगम करने के प्रयासों पर भी घोषणा की अपेक्षा की जा रही है.
उल्लेखनीय है कि पिछले महीनों में कश्मीर घाटी समेत पूरे जम्मू-कश्मीर में अशांति बढ़ी है तथा पाकिस्तान के साथ भी संबंध तनावपूर्ण हुए हैं. घाटी में अलगाववादी स्वरों को राज्य और देश में सांप्रदायिक माहौल से भी शह मिल रही है. आतंकी घुसपैठ और सीमा पर लगातार गोलीबारी भी कश्मीर में हालात बिगाड़ने के जिम्मेवार हैं.
आये दिन हो रहे अलगाववादी प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री की यात्रा का महत्व और बढ़ जाता है. कश्मीर के विकास की कुंजी मोदी सरकार के पास है, जिसे हकीकत में बदलने की जिम्मेवारी मुफ्ती सरकार की है. भाजपा और पीडीपी के साथ आने से यह आशा बंधी थी कि राज्य समेकित विकास की ओर बढ़ेगा और परस्पर विश्वास का वातावरण बनेगा.
लेकिन यह आशा अब तक फलीभूत नहीं हुई है. कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के मसले पर अब तक कोई उत्साहजनक पहल न तो राज्य सरकार की तरफ से हुई है और न ही केंद्र की ओर से. पिछले साल सितंबर की बाढ़ से तबाह लोगों का ठीक से पुनर्वास नहीं हो सका है.
उम्मीद है कि प्रधानमंत्री न सिर्फ आर्थिक स्तर पर, बल्कि राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी कश्मीर घाटी को मुख्यधारा में जोड़ने की पुरजोर कोशिश करेंगे, क्योंकि कश्मीरियों में भरोसा बहाल किये बिना घाटी में स्थायी रूप से अमन-चैन की बहाली संभव नहीं है.
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