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प्रधानमंत्री से उम्मीद

देश में यदि लोकतांत्रिक तरीके से हो रहे किसी कार्यक्रम को रोकने की कोशिश हो, तो यह सरकारों और सजग नागरिक समाज के लिए चिंता का सबब होना चाहिए. इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की हालिया सक्रियता सराहनीय है. मुंबई में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब के विमोचन कार्यक्रम को […]

देश में यदि लोकतांत्रिक तरीके से हो रहे किसी कार्यक्रम को रोकने की कोशिश हो, तो यह सरकारों और सजग नागरिक समाज के लिए चिंता का सबब होना चाहिए. इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की हालिया सक्रियता सराहनीय है.
मुंबई में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी की किताब के विमोचन कार्यक्रम को सुरक्षा देकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने जता दिया है कि असंवैधानिक हरकतों को रोकने की इच्छाशक्ति हो, तो वैचारिक प्रतिबद्धताएं या गंठबंधन की मजबूरियां आड़े नहीं आतीं. राज्य सरकार में सहयोगी शिवसेना ने न केवल आयोजन में बाधा पहुंचाने की धमकी दी, बल्कि आयोजक सुधींद्र कुलकर्णी के मुंह पर कालिख पोत कर यह भी जता दिया था कि अपनी जिद मनवाने के लिए वह कोई भी शर्मनाक हरकत कर सकती है.
लेकिन, शिवसेना को कड़ा संदेश देते हुए फड़नवीस ने स्पष्ट कहा कि ‘हम कसूरी का समर्थन नहीं कर सकते, पर अपने राज्य को अराजक स्थल नहीं बनने दे सकते. उचित वीजा पर आने की इजाजत प्राप्त सभी विदेशियों एवं अन्य हस्तियों को सुरक्षा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेवारी है.’ उन्होंने शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को फोन करके भी बता दिया कि विमोचन में विघ्न डाला गया, तो पुलिस सख्ती से पेश आयेगी.
आखिर कार्यक्रम शांतिपूर्वक संपन्न हुआ. देश को प्रधानमंत्री से भी आशा है कि वे अलोकतांत्रिक एवं असंवैधानिक हरकतों तथा बयानबाजियों को अपनी त्वरित प्रतिक्रियाओं से हतोत्साहित करेंगे. प्रधानमंत्री ने एक अखबार को दिये इंटरव्यू में दादरी हिंसा और महाराष्ट्र में शिवसेना की धमकियों के कारण मशहूर पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली के कार्यक्रम रद होने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बता कर ऐसी हरकतें करनेवालों को सही संदेश दिया है, लेकिन यह प्रतिक्रिया घटना के तुरंत बाद आती, तो भावनाएं भड़कानेवाली बयानबाजियों को रोका जा सकता था.
प्रधानमंत्री ने यह भी जोड़ा है कि ‘इसमें केंद्र का क्या रोल है?’ देश में आस्था के नाम पर सौहार्द बिगाड़ने की कोशिशों पर यह कह कर चुप्पी नहीं साधी जा सकती कि कानून-व्यवस्था संभालना राज्य की जिम्मेवारी है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि उनकी नीति ‘सबको साथ लेकर चलने तथा सबके विकास की’ है.
यही वादा उन्होंने आम चुनाव से पहले भी किया था, जिस पर जनता ने भरपूर भरोसा जताया था. लेकिन, क्या भड़काऊ या अलोकतांत्रिक हरकतों और बयानों पर चुप्पी से इस नीति पर अमल मुमकिन है? उम्मीद है, भविष्य में ऐसी घटनाओं एवं बयानों की निंदा करने के लिए वे किसी इंटरव्यू का इंतजार नहीं करेंगे.

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