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पारदर्शिता से होगा देश का विकास
एक बार फिर से पनप रही ठेकेदारी प्रथा देश और समाज दोनों के लिए नुकसानदेह है. इंसानियत और आबादी को नुकसान पहुंचानेवाली प्रथा का समाप्त हो जाना ही बेहतर है.किसी भी देश का विकास तभी संभव है, जब वहां के नागरिक भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त हो. यह यह तीन व्याधि नासूर बन जाये, […]
एक बार फिर से पनप रही ठेकेदारी प्रथा देश और समाज दोनों के लिए नुकसानदेह है. इंसानियत और आबादी को नुकसान पहुंचानेवाली प्रथा का समाप्त हो जाना ही बेहतर है.किसी भी देश का विकास तभी संभव है, जब वहां के नागरिक भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त हो. यह यह तीन व्याधि नासूर बन जाये, तो देश का विकास मात्र माखौल बन कर रह जाता है.
आज देश के िवकास कार्यों की स्थिति यह है कि सरकार हर काम ठेकेदारों के हाथों ही कराना चाहती है. यह ठेकेदारी प्रथा का ही नतीजा है कि सरकार की ओर से आवंटित योजना रािश का करीब आधा से अधिक हिस्सा या तो कागजी कार्रवाई पूरी करने में समाप्त हो जाता है या िफर वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है.
आज देश में अमीरी और गरीबी की खाई को बढ़ाने में भ्रष्टाचार, भय और भूख की सबसे अहम भूमिका है. आज की स्थिति यह है कि देश का हर नागरिक निजी स्वार्थों की पूर्ति करने में लगा है. पहले देश अंगरेजों के हाथों गुलाम था, आज देश के अमीरों और ठेकेदारों के हाथों गुलाम होते जा रहा है.
सबसे अहम बात यह है कि देश की सरकारों को भी बड़ी-बड़ी कंपनियां खोल कर बैठे बिचौलियों अथवा ठेकेदारों पर ही भरोसा है. तभी तो पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के नाम पर अनेकानेक योजनाओं की शुरुआत की जा रही है. इस तरह की योजनाओं में जनता की भूमिका कम और ठेकेदारों की भूमिका अधिक होती है. इसमें भी उपरोक्त तीन िवकार भय, भूख और भ्रष्टाचार अपनी अहम भूमिका निभाते हैं.
जिन्हें दो जून की रोटी का जुगाड़ करना होता है, वे किसी भी हाल में भूख मिटाने का प्रयास करते हैं. उनके इसी प्रयास से दो अन्य विकार भय व भ्रष्टाचार भी पैदा होते हैं. सही मायने में विकास इनके खात्मे के बाद होगा.
– नागनाथ झा, बारालोटा, पलामू
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