भारतीय वायु सेनाध्यक्ष अरुप राहा ने बयान दिया है कि हमारी सेना के पास नियंत्रण रेखा के पार स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविरों पर हमले की क्षमता है. उन्होंने यह भी कहा कि चीन तिब्बत में अपनी सैन्य क्षमताओं का विस्तार कर रहा है. युद्धक हेलिकॉप्टरों की खरीद से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने यह भी कह दिया कि भारत सरकार रूसी सरकार के संपर्क में है.
वायु सेनाध्यक्ष तीनों सेनाओं के प्रमुखों की कमिटी के भी मुखिया हैं. ऐसे में उनके ये बयान बहुत हद तक चिंताजनक है. यह ठीक है कि कोई सेना प्रमुख अपनी तैयारियों और क्षमता का उल्लेख करे, पर हमले का लक्ष्य या कार्रवाई का समय तय करने का अधिकार देश के राजनीतिक नेतृत्व को है, न कि सेना को. अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति के आधार पर सरकार ऐसे निर्णय करती है. इस लिहाज से यह बयान पूरी तरह से गैरजिम्मेवाराना है.
सशस्त्र सेनाओं के कई वरिष्ठ अधिकारी पहले भी इस तरह के अनावश्यक बयान देते रहे हैं. सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्द्धन राठौर भी इस तरह की बातें कह चुके हैं कि हमारी सेना पाकिस्तान में घुस कर हमला करने के लिए तैयार है. अब समय आ गया है कि उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व को सही परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास करें तथा ऐसे बयानों से बचने की कोशिश करें जो न सिर्फ उनके अधिकार और कार्य क्षेत्र की सीमा से परे हो, बल्कि जिनसे सरकार के कामकाज पर नकारात्मक असर भी पड़ सकता है. ऐसे विषयों में रक्षा और विदेश मंत्रालय के मंत्री और वरिष्ठ अधिकारी ही सरकार के पक्ष को आधिकारिक रूप से अभिव्यक्त कर सकते हैं. युद्ध और शांति तथा कूटनीति से जुड़े मसलों पर लापरवाही या अगंभीर रवैया अपनाना राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचा सकता है.
आश्चर्य की बात है कि यह सब समझते हुए भी पिछले कुछ सालों से सेनाओं के वरिष्ठ अधिकारियों में बिना सोचे-विचारे बयानबाजी की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. महत्वपूर्ण पदों पर बैठे राहा और राठौर जैसे लोगों को यह आत्मचिंतन करना चाहिए कि उनके गैरजिम्मेवाराना बयान दो-चार दिनों तक उन्हें चर्चा में जरूर ला सकते हैं, पर इनके सामरिक और कूटनीतिक परिणाम सुरक्षा की दृष्टि से बहुत नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. अक्सर देखा गया है कि बयानों के बाद इन पर स्पष्टीकरण देना पड़ता है जिससे मसला और अधिक उलझ जाता है. सेना और सत्ता के जिम्मेवार लोगों को संयम का ध्यान रखना चाहिए.