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अपनी मिसाल आप थे शास्त्री जी

कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार देश की राजनीति में सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के पर्याय लालबहादुर शास्त्री का समूचा जीवन इस बात की जीवंत मिसाल है कि कैसे नितांत विपरीत स्थितियों में भी अपने मूल्यों व नैतिकताओं से विचलित हुए बिना अपनी खुदी को इतना बुलंद किया जा सकता है कि देश की जरूरत के […]

कृष्ण प्रताप सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
देश की राजनीति में सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के पर्याय लालबहादुर शास्त्री का समूचा जीवन इस बात की जीवंत मिसाल है कि कैसे नितांत विपरीत स्थितियों में भी अपने मूल्यों व नैतिकताओं से विचलित हुए बिना अपनी खुदी को इतना बुलंद किया जा सकता है कि देश की जरूरत के वक्त उसकी नेतृत्व कामना को भरपूर तृप्त किया जा सके.
दुख की बात है कि दारुण मृत्यु ने उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में सिर्फ अठारह महीने ही दिये, लेकिन इस छोटी-सी अवधि में ही उन्होंने जैसी अमिट छाप छोड़ी, वह देशवासियों के दिल-व-दिमाग पर आज भी ताजा है.
2 अक्तूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में जन्मे शास्त्री जी का बचपन का नाम नन्हे था. पिता शारदा प्रसाद श्रीवास्तव नन्हे को अठारह महीने ही अपना स्नेह दे पाये थे कि दबे पांव आयी मौत उन्हें उठा ले गयी. मां रामदुलारी नन्हे को लेकर मिर्जापुर स्थित अपने पिता हजारीलाल के घर गयीं, तो थोड़े ही दिनों बाद हजारीलाल भी नहीं रहे. फिर तो नन्हे की परवरिश का सारा भार मां पर ही आ पड़ा और मां ने ही उन्हें जैसे-तैसे पाला व पढ़ाया-लिखाया. ननिहाल में ही शास्त्री जी नन्हे से लालबहादुर श्रीवास्तव में बदले. काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि मिलने पर उन्होंने अपने नाम से जुड़े जातिसूचक शब्द ‘श्रीवास्तव’ को हटा कर उसकी जगह ‘शास्त्री’ को दे दी. 1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेश प्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ. उनकी छः संतानें हुईं.
शास्त्री जी ने अपना राजनीतिक जीवन भारतसेवक संघ से शुरू किया और उसी के बैनर पर अहर्निश देशसेवा का व्रत लेकर स्वतंत्रता संघर्ष के प्रायः सारे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी की. आठ अगस्त, 1942 को बापू ने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू किया और भारतीयों से ‘करो या मरो’ का आह्वान किया, तो शास्त्री जी ने इलाहाबाद पहुंच कर इस आह्वान को चतुराईपूर्वक ‘मरो नहीं, मारो!’ में बदल दिया.
स्वतंत्रता के पश्चात पहले उनको उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में गोविंदबल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मंत्री बनाया गया. बाद में जब रेलमंत्री बने, तो एक रेल दुर्घटना के बाद इस्तीफा देकर मंत्रियों की नैतिक जिम्मेवारी स्वीकारने की एक नयी मिसाल कायम की.
27 मई, 1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून, 1964 को शास्त्री जी उनके स्थान पर प्रधानमंत्री बने, तो कहा कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता महंगाई रोकना और सरकारी क्रियाकलापों को व्यावहारिक व जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना है.
उन्होंने ही ‘जय जवान जय किसान’ जैसा लोकप्रिय नारा दिया. 11 जनवरी, 1966 को एक समझौते पर हस्ताक्षर के कुछ ही घंटों बाद शास्त्री जी का निधन हो गया. देश में यह खबर शोक की लहर की तरह फैल गयी. 1966 में उन्हें मरणोपरांत ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया.

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