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दहेज के खात्मे को आगे आयें युवक
दहेज प्रथा ने मानव को दानव बना दिया है. अब विवाह के नाम पर सामाजिक और पारिवारिक संबंध स्थापित करने के बजाय व्यापार किया जा रहा है. यही वजह है कि आज का वैवाहिक जीवन ही कुंठित होकर रह गया है. शायद यही कारण है कि आज का युवा खुद की मर्जी का जीवनसाथी चुनने […]
दहेज प्रथा ने मानव को दानव बना दिया है. अब विवाह के नाम पर सामाजिक और पारिवारिक संबंध स्थापित करने के बजाय व्यापार किया जा रहा है. यही वजह है कि आज का वैवाहिक जीवन ही कुंठित होकर रह गया है.
शायद यही कारण है कि आज का युवा खुद की मर्जी का जीवनसाथी चुनने लगा है. इसमें कभी-कभी माता-पिता की सहमति होती है, तो कभी वे इसके खिलाफ होते हैं. समाज में व्याप्त दहेज की कुरीति को देख कर तो ऐसा ही लगता है कि अभिभावक खुद ही अपनी संतानों को सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं.
जिन लोगों ने वैवाहिक संबंधों को व्यापार बना दिया है, उन्हें इसकी पवित्रता का आभास ही नहीं है. यह एक ऐसी परिपाटी है, जिसके द्वारा दो अनजान सारा जीवन एक साथ बिताने का निर्णय करते हैं.
यही वह परिपाटी है, जो दो परिवारों के बीच मधुर संबंध स्थापित कराती है. लेकिन लालच के भंवर में फंसा हुआ इंसान दहेज के लिए अपनी संतानों के जीवन की बलि चढ़ाने से भी बाज नहीं आ रहा है.
आज की युवा पीढ़ी के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा है कि क्या वे ऐसे जीवन की कल्पना करते हैं, जिसकी शुरुआत ही सौदेबाजी और शर्तो के आधार पर की जाती हो. हालांकि, सरकार ने इस प्रथा को रोकने के लिए कड़े कानून बना रखे हैं, लेकिन शादी से पूर्व कोई भी उसका इस्तेमाल नहीं करता.
हमारे अंदर का इंसान तभी जाग्रत होगा, जब हमारी युवा पीढ़ी जागेगी. युवाओं को इस कुप्रथा को भगाने के लिए आगे आना होगा. उन्हें पारिवारिक बंधनों को तोड़ कर नये बंधन की शुरुआत करने के पहले दहेज का त्याग करना ही होगा. उन्हें इसका एहसास करना होगा कि कल उन्हें भी इसके लिए विवश किया जा सकता है.
मनोरमा सिंह, जमशेदपुर
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