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प्राकृतिक संपदा का समुचित उपयोग हो
किसी राज्य के विकास में सड़कों एवं कल-कारखानों का अपना अलग महत्व होता है. यह विकास का मुख्य मापदंड है. लेकिन झारखंड में विकास के नाम पर वनों एवं खनिज संपदा का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है जो चिंता का विषय है. सड़क निर्माण एवं चौड़ीकरण के […]
किसी राज्य के विकास में सड़कों एवं कल-कारखानों का अपना अलग महत्व होता है. यह विकास का मुख्य मापदंड है. लेकिन झारखंड में विकास के नाम पर वनों एवं खनिज संपदा का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है जो चिंता का विषय है.
सड़क निर्माण एवं चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ों को काटा जा रहा है और खनिज संपदा की खोज में जमीन को खोखला किया जा रहा है. इसी तरह, यदि विकास की आपाधापी में वन एवं खनिज संपदा का अत्यधिक दोहन होता रहा तो निकट भविष्य में झारखंड अपने नाम का अस्तित्व ही खो देगा.
संक्षेप में कहा जा सकता है कि झारखंड की स्थिति सोने के अंडे देने वाली मुर्गी जैसी हो गयी है. इस संपदा का विकासार्थ उपयोग जायज है, लेकिन पर्यावरण पर पड़नेवाले असर का भी ख्याल रखना होगा.
बीके हेंब्रम, ई-मेल से
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