प्रेमचंद की कहानी पंच-परमेश्वर में अलगू चौधरी ने खाला से साफ कह दिया था कि जुम्मन मेरा पुराना मित्र है, उससे बिगाड़ नहीं कर सकता. तब बूढ़ी खाला ने अलगू के सोये धर्म-ज्ञान को जगाने के लिए जो बात कही, वह दुनिया की नैतिकता के इतिहास की सबसे चमकदार पंक्तियों में शुमार होने लायक है.
खाला ने कहा था- बेटा, क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात ना कहोगे! 2008 के मुंबई हमले को पाकिस्तान के प्रमुख अखबार ‘डॉन’ में छपे अपने लेख में ‘पाकिस्तान की धरती से भारत पर हुआ सुनियोजित हमला’ बता कर पाक की सर्वोच्च जांच एजेंसी एफआइए के पूर्व प्रमुख तारिक खोशा ने एक तरह से पाकिस्तान के सोये धर्मज्ञान को जगाने का ही काम किया है. पद पर रहते उनके लिए मुंबई हमले को पाक प्रायोजित बताना खतरों से भरा रहा होगा और बिगाड़ का डर उन्हें भी सता रहा होगा, तभी उन्होंने तनिक देरी से मुंह खोला है. पाक में सरकार, सेना, आइएसआइ व मजहबी कठमुल्लों के पारस्परिक शक्तिक्षेत्र के बीच फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल है.
मुंबई हमले में दहशदगर्दो ने जिन 166 लोगों की जान ली थी, उनमें अन्य मुल्कों के नागरिक भी शामिल थे. यही कारण था कि उस वक्त वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान के विरुद्ध जनमत बना और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पाकिस्तान को आतंकवादियों का अभयारण्य करार दिया गया. अपने को आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक लड़ाई में अमेरिका का साथी बता कर इस एवज में करोड़ों डॉलर पानेवाले पाकिस्तान ने उस वक्त अंतरराष्ट्रीय आलोचना से उबरने के लिए अपनी संघीय जांच एजेंसी के मुखिया तारिक खोशा को हमले की असलियत बताने का जिम्मा सौंपा था.
अगर खोशा जांच के सारे निष्कर्ष पद पर रहते बताते, तब शायद मुंबई हमले का मास्टरमाइंड जकीऊर्रहमान लखवी पाक में पकड़े जाने के बावजूद वहां की अदालत से जमानत पर रिहा होकर बेखौफ घूम न रहा होता.
खोशा ने अपने लेख में सात बड़े खुलासे किये हैं, जो एक तरह से मुंबई हमले को लेकर भारत के उन दावों की पुष्टि करते हैं, जिन्हें पाक सरकार झुठलाने की कोशिश करती रही है.
खोशा की मानें तो मुंबई हमले के दहशतगर्दो में से एक अजमल कसाब पैदाइश व परवरिश के आधार पर पाकिस्तानी था और जांच साबित करती है कि उसने प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की सदस्यता ली थी. आतंकियों को प्रशिक्षण सिंध के थट्टा में दिया गया और सिंध से ही उन्हें भारत भेजा गया. पाक जांच एजेंसी ने न सिर्फ सिंध स्थित आतंकी प्रशिक्षण केंद्र की पहचान की, बल्कि मुंबई हमले में इस्तेमाल किये गये असलहे से जुड़ी बहुत सी चीजों को भी वहां से जब्त किया. खोशा ने यह भी लिखा है कि आतंकियों ने समुद्री रास्ते से मुंबई आते हुए जिस नाव का इस्तेमाल किया था, उसे बाद में कराची बंदरगाह पर लाकर छुपाने की नीयत से नया रंग-रूप दिया गया.
वे यह भी लिखते हैं कि आतंकी जिस नाव के सहारे मुंबई तट पर उतरे, उसके इंजन से जुड़ा एक पेटेंट नंबर जापान का था और उस नंबर की तहकीकात से पता चला कि इंजन जापान से लाहौर लाया गया और फिर लाहौर से कराची की एक दुकान में पहुंचा, जहां से आतंकियों ने उसे खरीदा. कराची के जिस ठिकाने से दहशतगर्दो को सारे निर्देश दिये गये उसकी भी पहचान हुई और साजो-सामान जब्त किये गये. इसी तहकीकात के नतीजे के तौर जकीउर्रहमान लखवी और उसके सहायक की गिरफ्तारी हुई.
मुंबई हमले के पाक प्रायोजित होने के भारत के आरोप की पुष्टि अगर खुद पाकिस्तानी जांच एजेंसी का पूर्व प्रमुख तथ्यों के आधार पर कर रहा है, तो इसे भारत की नैतिक जीत माना जाना चाहिए. लेकिन, पाकिस्तान उनकी बातों पर गंभीरतापूर्वक विचार करेगा, इसके संकेत नहीं मिले हैं.
अगर ऐसा होता, तो कम-से-कम लखवी के मामले में पाक सरकार थोड़ी सक्रिय होती और उसकी जमानत को चुनौती देने में कोताही न दिखाती. गत अप्रैल में खबर आयी थी कि इसलामाबाद के हाईकोर्ट ने मुंबई हमले से जुड़े केस को दो महीने के भीतर समाप्त करने का निर्देश दिया था, लेकिन तय अवधि को बीते डेढ़ महीने हो गये, फिर भी पाक सरकार लखवी की जमानत को चुनौती देने के लिए तैयार नहीं है.
दरअसल दिक्कत दहशतगर्दो को लेकर पाक हुक्मरानों की समझ में है. बेशक वे दहशतगर्दी के खिलाफ हैं, लेकिन दहशतगर्द की पहचान में चूक जाते हैं. पाक सियासत का एक बड़ा हिस्सा मान कर चलता है कि अगर कोई भारत या अफगानिस्तान के खिलाफ हथियार उठाये, कश्मीर को आजाद कराने या अफगानिस्तान में इसलामी शासन लागू करने के लिए जंग छेड़े, तो वह राष्ट्रभक्त है! पाकिस्तान जब तक आतंकवाद को अच्छा और बुरा की श्रेणी में बांट कर देखने की मनोग्रंथि से नहीं उबरता, तब तक वहां की जनता इसकी कीमत चुकाने के लिए अभिशप्त रहेगी. उम्मीद करनी चाहिए कि खोशा का रहस्योद्घाटन पाक हुक्मरानों के लिए दहशतगर्दी के बारे में नये सिरे से सोचने का अवसर साबित होगा.