नीति आयोग के अध्यक्ष अरविंद पानगढ़िया ने कहा है कि हमारे देश में भूमि अधिग्रहण एक कठिन काम है. उन्होंने यह भी कहा है कि मौजूदा कानून के अनुरूप अगर अधिग्रहण हो तथा सारी प्रक्रि याएं सामान्य ढंग से हों, तब भी इसमें पांच वर्ष लग सकते हैं. लंबित अधिग्रहण विधेयक के पक्ष में सरकार पहले भी यह बात कहती रही है. इस मुद्दे पर चल रही बहस में कई तर्क हैं, लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विकास की सभी परियोजनाओं के लिए जमीन बुनियादी जरूरत है और जमीन हासिल करने में मुश्किलें बहुत हैं. पिछले वित्त वर्ष में प्रोमोटरों की दिलचस्पी कम होने के कारण 132 परियोजनाओं में 69,600 करोड़ रु पये फंसे पड़े हैं. लेकिन जमीन नहीं मिलने के कारण 90,100 करोड़ रु पये विभिन्न परियोजनाओं में फंसे हैं. भूमि अधिग्रहण की समस्याओं के कारण 45 परियोजनाएं रद्द कर दी गयीं तथा कच्चे माल और अन्य वस्तुओं की अनुपलब्धता के कारण 20 परियोजनाओं को खारिज कर देना पड़ा.
पर्यावरण संबंधी मंजूरी न मिलने से सिर्फ आठ परियोजनाएं ही रु की पड़ी हैं, जिनमें 20,700 करोड़ रु पये फंसे हैं. अगर 100 बड़ी परियोजनाएं चालू हो जाती हैं, तो समस्या के 83 फीसदी का समाधान हो जायेगा. स्वाभाविक है कि परियोजनाओं के पूरा होने में देरी से खर्च में तेज वृद्धि होती है और लोगों को विकास का अपेक्षति लाभ भी नहीं मिल पाता है. इसके कारण निवेशकों, बैंकों और सरकार का ढेर सारा धन भी फंस जाता है जिसका सीधा असर आर्थिक चक्र पर होता है और परिसंपत्तियां ठिठक जाती हैं. आकलन है कि राष्ट्रीय बैंकों का फंसा हुआ धन छह फीसदी तक जा सकता है और बैंकों की ब्याज से होनेवाली कमाई भी कम हो रही है. बैंकों के स्वास्थ्य को मदद देने के लिए वित्त मंत्री अरु ण जेटली ने 70 हजार करोड़ की मदद देने की घोषणा की है.
ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार तथा विभिन्न राजनीतिक दल दलगत सीमाओं से ऊपर उठ कर सभी आयामों के साथ मसले पर गंभीरता से विचार करें और अधिग्रहण, प्रशासनिक देरी व लापरवाही, निवेश की समस्या आदि पर ठोस निर्णय लें. अर्थव्यवस्था विकास परियोजनाओं की सफलता पर ही निर्भर है तथा इनके बिना रोजगार, उत्पादन और समृद्धि की आकांक्षाएं फलित नहीं हो सकती हैं. विधायिका और कार्यपालिका के ऊपर यह महती जिम्मेवारी है कि वे लोगों की उम्मीदों को पूरा करने के लिए समुचित और त्विरत पहल करें. इस बाबत की जानेवाली देरी से विकास पर नकारात्मक असर होगा.