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जनसंख्या की चुनौती

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत 2022 में 1.4 अरब की जनसंख्या के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए, सबसे अधिक आबादी का देश हो जायेगा. इससे पहले यह आकलन था कि ऐसी स्थिति 2028 में आयेगी. स्वाभाविक रूप से जनसंख्या में वृद्धि का दबाव संसाधनों और अवसरों की उपलब्धता पर पड़ता है […]

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत 2022 में 1.4 अरब की जनसंख्या के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए, सबसे अधिक आबादी का देश हो जायेगा. इससे पहले यह आकलन था कि ऐसी स्थिति 2028 में आयेगी.
स्वाभाविक रूप से जनसंख्या में वृद्धि का दबाव संसाधनों और अवसरों की उपलब्धता पर पड़ता है और इस कारक को ध्यान में रख कर योजनाओं का निर्धारण भी होता है. ऐसे में पूर्ववर्ती आकलन से छह वर्ष पहले ही जनसंख्या का इस स्तर पर आ जाना, विकास के प्रयासों के लिए बड़ी चुनौती है.
हालांकि देश तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद धीमी गति से ही सही, प्रगति की ओर उन्मुख है तथा इसके आर्थिक विकास की संतोषजनक संभावनाएं भी हैं, परंतु आबादी में बदलाव के नये आकलन के अनुरूप योजनागत दृष्टिकोण में दूरगामी परिवर्तन की आवश्यकता होगी. आबादी का सबसे अधिक दबाव खाद्य उपलब्धता पर होता है. पुरानी तकनीक तथा सिंचाई की कमी से कम उपज, पैदावार की गुणवत्ता में कमी और खराब प्रबंधन से खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर बरबादी आदि जैसी समस्याएं पहले से हैं.
जलवायु-परिवर्तन, प्रदूषण और मॉनसून की अनिश्चितता जैसी परेशानियां भी मौजूद हैं. इस बीच आबादी का दबाव शहरों पर बढ़ रहा है और वहां जीवन-स्तर में निरंतर गिरावट दर्ज की जा रही है. बढ़ते वायु प्रदूषण ने तो शहरों को मौत के पिंजरे में बदल दिया है. गंदगी, कूड़ा-कचरा, प्रदूषित जल और शोर की समस्याएं भी विकराल रूप ले रही हैं.
एक ओर जमीन कम पड़ रहे हैं, दूसरी ओर युवाओं को रोजगार देने और विकास की गति तेज करने के लिए औद्योगिक वृद्धि तथा शहरीकरण की चुनौतियां भी मुंह बाये खड़ी हैं. हालांकि हमारी आबादी के आधे हिस्से की उम्र 27 वर्ष से कम है और उसकी विकास में अहम भूमिका है, परंतु जीवन-प्रत्याशा बढ़ने से आनेवाले समय में बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ेगी, जिनकी जरूरतों का दबाव भी अर्थव्यवस्था पर होगा.
पिछले दशकों में आबादी बढ़ने की दर अपेक्षाकृत कम हुई है, पर यह संतोषजनक नहीं है. इस दर को नियंत्रित करने के साथ-साथ कई राज्यों में अधिक जनसंख्या घनत्व के मद्देनजर योजनाएं हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए.
कौशल विकास, स्मार्ट शहर, स्वच्छ भारत, मेक इन इंडिया आदि महत्वाकांक्षी पहलों को कार्य-रूप देने की प्रक्रिया में बढ़ती आबादी की चिंता को केंद्र में रखा जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो उत्पादन और रोजगार दर के साथ-साथ सफल परियोजनाओं का भी सही लाभ देश को नहीं मिल सकेगा.

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