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‘कॉल ड्रॉप’ का ऑडिट

केंद्र सरकार ने करोड़ों मोबाइल उपभोक्ताओं से मिल रही कॉल ड्रॉप की शिकायतों से निपटने के लिए मोबाइल नेटवर्को के विशेष ऑडिट का आदेश दिया है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) से कहा गया है कि वह मोबाइल ऑपरेटरों की सेवा गुणवत्ता का आकलन कर उन्हें ‘प्रोत्साहित या हतोत्साहित’ करने की एक प्रणाली बनाये. देश […]

केंद्र सरकार ने करोड़ों मोबाइल उपभोक्ताओं से मिल रही कॉल ड्रॉप की शिकायतों से निपटने के लिए मोबाइल नेटवर्को के विशेष ऑडिट का आदेश दिया है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राइ) से कहा गया है कि वह मोबाइल ऑपरेटरों की सेवा गुणवत्ता का आकलन कर उन्हें ‘प्रोत्साहित या हतोत्साहित’ करने की एक प्रणाली बनाये. देश में बात करते-करते फोन कॉल का बीच में ही कट जाना एक आम समस्या है. एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी का तर्क है कि कॉल ड्राप की समस्या मोबाइल टॉवरों की कमी के चलते होती है और विकिरण संबंधी सरकारी सुरक्षा मानकों के सख्त होने के कारण टेलीकॉम कंपनियां पर्याप्त संख्या में मोबाइल टॉवर नहीं लगा पा रही हैं.

हो सकता है यह सच हो, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ग्राहक कॉल-ड्राप से परेशान होते हैं और प्रति मिनट की दर से मोबाइल नेटवर्क की सेवा पाने के अपने निर्णय को लेकर ठगा हुआ महसूस करते हैं, क्योंकि कॉल कुछ ही सेकेंड में कट जाता है और कंपनियां पूरे मिनट का पैसा वसूल कर मालामाल होती हैं. ऐसे में 90 करोड़ से ज्यादा मोबाइल कनेक्शन वाले इस देश में कॉल ड्रॉप की युक्ति से कोई बड़ी कंपनी रोज करोड़ों के वारे-न्यारे कर सकती है. दरअसल, उदारीकृत अर्थव्यवस्था में सेवा और सामानों की सुपुर्दगी का काम तेजी से बाजार के हाथों में जा रहा है.

ऐसे में गुणवत्ता का नियमन महत्वपूर्ण हो जाता है. उदारीकृत बाजार में ग्राहक अपनी मर्जी का राजा माना जाता है और व्यावसायिक कंपनियां ग्राहकों की मर्जी का ध्यान रखे बिना नहीं चल सकतीं. परंतु, मामला जब स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास या दूरसंचार जैसी बुनियादी सेवाओं की सुपुर्दगी से जुड़ा हो, तो इनके नियमन में न तो ढिलाई बरती जा सकती है और न ही नियमन का काम बाजार की शक्तियों के हाथों में सौंपा जा सकता है. खुला बाजार यदि बेलगाम हो तो ग्राहकों के लिए विकल्पों की कमी करता है और उसकी प्रवृति एकाधिकारी स्वामित्व हासिल करने की तरफ होती है. ऐसे में ग्राहक राजा नहीं रह जाता. विकल्पहीनता की स्थिति में उसे सेवा और सामान पाने के लिए वह सब कुछ भी सहना पड़ता है, जिसे कंपनियां अपने मुनाफे के लिए जरूरी समझती है. इसलिए आम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने और टेलीकॉम कंपनियों की एकाधिकारी प्रवृत्ति पर लगाम कसने की नीयत से ट्राइ यदि दूरसंचार मंत्रलय के निर्देश पर कोई कारगर प्रणाली विकसित करती है, तो निश्चित ही यह एक सराहनीय कदम होगा.

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