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समाज सुधार के नाम पर दुकानदारी
भारत में ज्यादातर समाज सुधारक आजादी के पहले अधिक तेजी से सामाजिक बदलाव की ओर अग्रसर थे. राजाराम मोहन राय, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती आदि उन्हीं में शामिल थे. आजादी के बाद लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष संविधान के साथ भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार की भारी संभावना थी. परिपक्व राजनीतिक नेतृत्व से खाप पंचायत, मुसलिम पर्सनल […]
भारत में ज्यादातर समाज सुधारक आजादी के पहले अधिक तेजी से सामाजिक बदलाव की ओर अग्रसर थे. राजाराम मोहन राय, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती आदि उन्हीं में शामिल थे.
आजादी के बाद लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष संविधान के साथ भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधार की भारी संभावना थी. परिपक्व राजनीतिक नेतृत्व से खाप पंचायत, मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड और विभिन्न ग्राम पंचायतें, सामाजिक और धार्मिक सुधार का एक अच्छा मंच हो सकते थे.
अपरिपक्व और सत्ता के भूखे नेताओं ने इस संभावना को शुरुआत में ही खत्म कर दिया. सामाजिक सुधार उनकी समझ से परे है. राम मंदिर निर्माण और शाह बानो मामले ने रूढ़िवादी और धार्मिक कट्टरपंथी को प्रेरित किया. आज देश में समाज सुधार के नाम पर लोगों की दुकानदारी अधिक चल रही है.
हराधन मुखोपाध्याय, जमशेदपुर
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