‘आधार कार्ड को सरकारी सेवाओं या सब्सिडी का लाभ पाने के लिए अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता.’ सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश करोड़ों आम भारतीयों के लिए राहत की खबर बन कर आया है. साथ ही यह आधार कार्ड की योजना पर मंथन करने की जरूरत पर भी बल दे रहा है.
आधार कार्ड योजना शुरुआत से ही विवादों के घेरे में रही है. इस कार्ड के पैरोकारों ने इसे एक ऐसे पहचान-पत्र के तौर पर पेश किया था, जो आम भारतीय को देशस्तरीय मान्य पहचान दिलायेगा. शुरुआत में आधार कार्ड के लिए नामांकन को स्वैच्छिक बताया गया था. लेकिन, पिछले करीब एक साल से आधार कार्ड को सरकारी सेवा तथा सब्सिडी पाने का ‘अनिवार्य आधार’ बनाने की कोशिशों ने आम लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं. केंद्र सरकार पहले ही आगामी एक जनवरी तक देश के 269 जिलों में एलपीजी सब्सिडी के बदले सीधे ‘आधार कार्ड’ आधारित नकद ट्रांसफर की घोषणा कर चुकी है.
कांग्रेस की ‘गेम चेंजर’ प्रत्यक्ष नकद स्थानांतरण योजना भी आधार कार्ड भरोसे ही है. गौरतलब है कि आधार कार्ड विरोधी इसको आम आदमी के मानवाधिकारों का हनन करनेवाला करार देते रहे हैं, क्योंकि यह हर नागरिक से उसकी गोपनीय जानकारियां इकट्ठा करता है. इस पर एक बड़ा आरोप यह भी लगता रहा है कि इसे कार्यपालिका के आदेश पर शुरू कर दिया गया, जबकि इस बाबत एक विधेयक संसद में लंबित पड़ा है और संसद की स्थायी समिति इस पर कड़ा ऐतराज जता चुकी है और इसे गैरकानूनी तक बता चुकी है. आधार कार्ड की योजना पर करीब 15,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है.
चूंकि नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर में भी लोगों के नाम और पहचान को दर्ज किया जा रहा है, ऐसे में आधार कार्ड पर करोड़ों ‘लुटाने’ का तर्क कइयों की समझ से परे है. लेकिन, केंद्र सरकार हर विरोध को दरकिनार करते हुए लगातार आधार कार्ड को आम आदमी पर थोपने पर आमादा नजर आ रही थी. ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट का फैसला केंद्र सरकार के लिए एक बड़ा झटका और आम आदमी का पक्ष लेनेवाला कहा जा सकता है. इस फैसले से ‘आपका पैसा, आपके हाथ’ के बल पर चुनावी नैया पार कराने के कांग्रेस की महत्वाकांक्षाओं को भी झटका लगा है.