वित्तीय वर्ष 2012-13 के बजट में केंद्र सरकार ने राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में रसोइया के काम में लगी 80 हजार माता समितियों की सदस्यों के मानदेय में एक हजार रुपये की बढ़ोतरी के लिए राशि आवंटित तो कर दी है, लेकिन दस सालों से भी अधिक समय से बिना किसी नियमावली के राज्य के 42 हजार विद्यालयों में शून्य मानदेय पर कार्यरत इन महिलाओं, जिनमें अधिकतर परित्यक्ताएं, निराश्रित तथा विधवाएं हैं, के दिन बहुरेंगे इसमें संदेह ही है.
वजह यह है कि मानदेय में बढ़ोतरी के लालच में माता समिति के सदस्यों की जगह ग्राम शिक्षा समिति के सदस्य अपनी संकीर्ण मानसिकता के तहत अपने गुटों की महिलाओं को काम पर लगाने की कोशिश करेंगे. ऐसे में इन असहाय महिलाओं को शिक्षेतर कर्मियों की श्रेणी में रखने और इनके लिए आचार संहिता बनाने की जरूरत है.
(बिरेंद्र प्रसाद शर्मा, गोविंदपुर, धनबाद)