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मन, मैदा और मैगी

चंचल सामाजिक कार्यकर्ता मैगी ने जो डगर खोला है, अभी बहुत कुछ खुलेगा. खाने में पहनने में, जीने के सलीके में जो अंगरेजियत आयी है और लूट का खेल चल रहा, वह सब बंद होगा. बस मन बनाने की बात है. अंगरेजियत मने पश्चिमी सभ्यता. जा रे जमाना! चले थे कहां के लिए, ससुरे पहुचाय […]

चंचल

सामाजिक कार्यकर्ता

मैगी ने जो डगर खोला है, अभी बहुत कुछ खुलेगा. खाने में पहनने में, जीने के सलीके में जो अंगरेजियत आयी है और लूट का खेल चल रहा, वह सब बंद होगा. बस मन बनाने की बात है. अंगरेजियत मने पश्चिमी सभ्यता.

जा रे जमाना! चले थे कहां के लिए, ससुरे पहुचाय दिये कहां? ऐसा सपने में भी ना सोचे रहे, तेरे बिकास की.. बिजली औ ई ससुरी सड़क.. लाल्साहेब जामा के बाहर हैं. एक-एक करके सबको गरियाये जा रहे हैं. कोलई दूबे को हंसी आ गयी और वे ठहाका लगा कर हंस दिये. यह जले पर नमक की तरह लगा और लाल्साहेब कोलई दुबे पर पलट पड़े- इसमें हंसी क का बात है!

हम कुछ गलत कहे का? कोलई मुंहफट और हंसमुख दोनों हैं-गलत? बिलकुल ना गलत कह्यो, मुला अब खुदे समझो. विकास उपधिया की बात करि रह्यो कि ऊ विकास, जिसकी चर्चा हर सरकारी नेता करता है? अगर सरकारी विकास पे तने खड़े हो, तो एक बात जान लो उस विकास की की कोई मां नहीं होती. और होती भी होगी तो उसे सरकार बहुत दबा-छिपा कर रखती है, उसे तुम ना पइबो.

असल मामला फंस गया है मैगी का. हुआ यूं कि आजकल खबरें गांव तक धड़ल्ले से पहुंचने लगी हैं. गांव-गांव में अखबार, घर-घर में डिब्बा. बच के कहां जाओगे. तो हुआ यूं कि लाल्साहेब क बड़का लड़िका जब कलकत्ता कमा के वापस ‘मुलुक’ आया, तो उसकी बाल्टी में मूढ़ी-बतासा की जगह मैगी-चिप्स रहा. उसकी आंख खुल गयी कि ई तो ससुरा गांव में हमसे भी पहले पहुंच चुका है. रामलाल की दूकान पर.

उन दिनों की बात है, जब बच्चे को कुसमय भूख लगती रही तो बच्चे को चना-चबैना, सेतुआ, लाई, ढूंढ़ी देकर ‘सांत’ कर दिया करते रहे. लेकिन जब से अखबार, डिब्बा, शहर का कचड़ा गांव में गिरा है, अंगरेजी मीडियम से आयी परानपुर वाली बहुओं के तेवर और चाल-ढाल में भी बदलाव आ गया है. भागलपुर वाली त बिलकुल फेनूगिलाफी है. बस, दो मिनट! कहके ऐसा मटकेगी कि ‘रेखा’ भी मात खा जाये. सो, हे पाठक जी, इत्ता भर जान लीजिए कि गांव के घर-घर में ऐश्वर्या राय, माधुरी दीक्षित, फलानी-फलानी फल-फूल रही हैं और सड़कों पर तमाम खानों का जमावड़ा हो चुका है. ‘बिकास’ ने ऐसा ‘बरबाद’ कि हम कहीं के ना रहे पंचों! अब इसमें किसका ‘दोख’ बताया जाये.

बापू ने इस गांव का जो सपना देखा था, वह सब खराब हो गया. सरकार ने बिजली दी, कम ही सही. उसे कृषि यंत्र के साथ जोड़ते. कुटीर उद्योग में लगाते, लेकिन अब वह डिब्बा की बकवास में आ गयी. और डिब्बा! पूछो मत! बोलते-बोलते लाल्साहेब हांफने लगे.

खा ससुर मैगी.. कह कर कपार पर हाथ रख कर बैठ गये. कयूम मियां ने जगह बना ली- और जो ई चाय प्लास्टिक के पुरवा में देते हो बेटा लाल्साहेब! इसके बारे में भी कुछ बोलोगे? उठाओ, थोड़ा सा दबाव बढ़ा कि पिच्च से पूरी चाय जांघे पे. कहो भाय लखन? लखन को सरम आ गयी. एक बार हो गया रहा. बड़े कुजगह चाय गिर गयी रही. बिलकुल गरम. लखन के मरम पर कयूम ने नमक रगड़ दिया. कई लोग मुस्कुरा दिये. बात आगे चलती, और चलेगी भी, लेकिन तब तक चाय आ गयी.

कीन उपाधिया की बड़ी भद्दी आदत है, सुड़क-सुड़क चाय पीने की. और यही आवाज भी निकलती है. चिखुरी ने घुड़की दी. ठीक से चाय पियो. कीन संभले लेकिन आदत? उसे कैसे संभालें. गांव में मैगी के खिलाफ बयार हो गयी है. रामलाल की दूकान से मैगी गायब. उमर दरजी ने जब यह खबर दी, तो चिखुरी के होठों पर मुस्कान खिल गयी- वक्त आ रहा है कि अब सारी दुकानें बंद होंगी.

लूट के खेल का पर्दा उठा है. मैगी ने जो डगर खोला है, अभी बहुत कुछ खुलेगा. खाने में पहनने में, जीने के सलीके में जो अंगरेजियत आयी है और लूट का खेल चल रहा, वह सब बंद होगा. बस मन बनाने की बात है. अंगरेजियत मने पश्चिमी सभ्यता. पश्चिम का भूगोल, उनकी रवायतें, कम आबादी और कम जमीन की कमतर उपजाऊपन उन्हें शहर और शहरी करण के लिए बाध्य करता है, लेकिन भारत जैसी आबादी और जमीन का विस्तार हमे गांव की सभ्यता में रहने, फलने-फूलने की आबो-हवा देता है. अगर हम गांव का विनाश करके शहर की मंशा को फलित करना चाहेंगे, तो बेमौत मारे जायंगे.

चलो अपनी जमीन पर खड़े हो. जो हमारी रवायतें थीं, उन पर जिंदा रहने की शुरुआत करो. जिंदगी बोतलबंद पानी से हटाओ, कूएं की ओर चलो. किसी भी पढ़े-लिखे से पूछो कि भइये, ई जो बोतल में पानी बंद है, क्या वजह है कि इसमें कीड़े नहीं पड़ रहे. वह तुरंत जवाब देगा कि इसमें कीट नाशक दवा डाली हुई है. तो हम जहर खुद पी रहे हैं.

बात सच्ची है.. नवल उपाधिया अब तक मुंह बाये सब सुन रहे थे. चिखुरी ने बात को पूरा किया. यह लूट का सबसे छोटा उदाहरण है, जिसमें हम सब मारे जा रहे हैं. इसे बदलो और खुद बदलो. राजनीति को भी बदलो. अचानक नवल सप्तम में आ गये- ननदी तुम ही.. पिया मोर विदेश पठाऊ.. और साइकिल से आगे बढ़ गये..

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