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बंद हो जनता की कमाई की खुली लूट
यह विडंबना ही है कि जिस देश में करीब दो-तिहाई आबादी बमुश्किल रोजी-रोटी का इंतजाम कर पाती हो, वहां जनता की सेवा का दंभ भरनेवाले राजनेता अपने भवनों की साज-सज्ज पर करोड़ों रुपये खर्च कर देते हैं. कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला द्वारा राजभवन की मरम्मत और सजावट में चार करोड़ रुपये खर्च करने तथा […]
यह विडंबना ही है कि जिस देश में करीब दो-तिहाई आबादी बमुश्किल रोजी-रोटी का इंतजाम कर पाती हो, वहां जनता की सेवा का दंभ भरनेवाले राजनेता अपने भवनों की साज-सज्ज पर करोड़ों रुपये खर्च कर देते हैं.
कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला द्वारा राजभवन की मरम्मत और सजावट में चार करोड़ रुपये खर्च करने तथा नौ महीने में हवाई यात्र में 1.30 करोड़ खर्च करने का मामला चिंताजनक जरूर है, पर यह खबर चौंकानेवाली नहीं है. कुछ महीने पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अपने आवास में वास्तु शास्त्र के अनुसार बदलाव करने के बाद नया सचिवालय और नये सरकारी भवन बनाने की घोषणा की है. इसी तरह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी वास्तु के अनुसार अपने कार्यालय परिसर में फेर-बदल व निर्माण में करोड़ों रुपये खर्च कर चुके हैं.
मई के शुरू में छपी खबरों के मुताबिक, नायडू अपने आवास और कार्यालयों पर करीब 100 करोड़ खर्च चुके हैं. वर्तमान लोकसभा के अनेक सांसद कई महीनों तक दिल्ली के पंच सितारा होटलों में रहे थे, क्योंकि पूर्व सांसदों ने अपने आवास समय पर खाली नहीं किया था. इसमें हुए करोड़ों के खर्च का भुगतान सरकारी कोष से किया गया था. गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत परसेकर द्वारा दो आधिकारिक बंगलों पर कब्जे का मामला भी कुछ माह पहले चर्चित हुआ था.
वर्ष 2012 में सूचना के अधिकार के तहत ज्ञात हुआ था कि मायावती ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में अपने आवास पर 86 करोड़ रुपये खर्च किये थे. महाराष्ट्र में 2010-13 के बीच मंत्रियों के बंगलों पर 21 करोड़ खर्च हुए थे. केंद्र सरकार ने 2004-09 के बीच सांसदों और मंत्रियों के दिल्ली आवासों पर करीब 100 करोड़ रुपये खर्च किये थे. दुर्भाग्य से इन मसलों पर सभी दल चुप रहते हैं और सार्वजनिक धन के खुले दुरुपयोग के मामले चर्चा का विषय नहीं बनते.
अब समय आ गया है कि सरकारी भवनों और आवासों पर खर्च की सीमा निर्धारित हो और इस संबंध में स्पष्ट नियम व निर्देश तय किये जायें. ऐसे खर्चो का लेखा-जोखा भी आम किया जाना चाहिए. जनता और करदाताओं की मेहनत की कमाई के बेतहाशा खर्च की प्रवृति पर तुरंत रोक लगाने की आवश्यकता है.
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