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पहली ही मौद्रिक नीति ‘अलोकप्रिय’

।।राजीव रंजन झा।।(संपादक, निवेश मंथन)रघुराम राजन ने गत 4 सितंबर को आरबीआइ गवर्नर का पदभार संभालते ही सचेत किया था कि आनेवाले दिनों में उनके कुछ कदम अलोकप्रिय भी हो सकते हैं. उनकी ‘रॉकस्टार’ छवि से उत्साहित बाजार ने तब इस चेतावनी को रस्मी माना. किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह चेतावनी इतनी जल्दी […]

।।राजीव रंजन झा।।
(संपादक, निवेश मंथन)
रघुराम राजन ने गत 4 सितंबर को आरबीआइ गवर्नर का पदभार संभालते ही सचेत किया था कि आनेवाले दिनों में उनके कुछ कदम अलोकप्रिय भी हो सकते हैं. उनकी ‘रॉकस्टार’ छवि से उत्साहित बाजार ने तब इस चेतावनी को रस्मी माना. किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह चेतावनी इतनी जल्दी हकीकत बन जायेगी- पदभार संभालने के दो हफ्ते बाद ही मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में!

राजन के शुरुआती कदमों और बयानों से बाजार में जो उत्साह पैदा हुआ, उससे रुपये की कमजोरी थमी थी. एक डॉलर की कीमत 68.8 के रिकॉर्ड स्तर से संभल कर नीचे आने लगी. उस पृष्ठभूमि में ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने बांड खरीदारी का कार्यक्रम अभी धीमा न करने का फैसला किया, तो रुपये में कुछ और मजबूती लौटी. इसी कड़ी में हमने इस हफ्ते एक डॉलर की कीमत 62 रुपये से नीचे जाती देखी.

आरबीआइ की यह समीक्षा इसलिए भी बाजार में खास उत्सुकता जगा रही थी कि राजन के गवर्नर बनने के बाद की यह पहली समीक्षा बैठक है. एक दिन पहले गुरुवार को बाजार ने जबरदस्त तेजी दिखायी थी, जिसका मुख्य कारण फेडरल रिजर्व के फैसले से बना उत्साह था. जिन क्षेत्रों के शेयरों ने सबसे ज्यादा तेजी दिखायी थी, उनमें बैंकिंग (6.8 %), रियल एस्टेट (5.34 %) और कैपिटल गुड्स (4.75 %) प्रमुख हैं. ऑटो सूचकांक भी 2.85 % उछाल दर्ज कर पाया. ब्याज दरों से प्रभावित होनेवाले इन खास क्षेत्रों के शेयरों का बेहतर प्रदर्शन देख कर स्पष्ट था कि बाजार ने राजन से ब्याज दरों में राहत की उम्मीद बांध ली है.

आरबीआइ की समीक्षा बैठक से पहले शुक्रवार सुबह अपने नियमित स्तंभ में मैंने लिखा था कि यह उम्मीद मुझे खतरनाक लग रही है. मुझे लग रहा था कि राजन नकदी की स्थिति में ढील देनेवाले कुछ कदम भले उठा लें, ब्याज दरों में कटौती से पहले शायद वे कुछ और इंतजार करना बेहतर समङोंगे. मगर मैंने भी नहीं सोचा था कि राजन रेपो दर में 0.25 % वृद्धि का भी फैसला कर सकते हैं. बाजार विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों के बीच कयास एक ही बात पर था- दर घटेगी या नहीं. दर बढ़ाने का फैसला कर राजन ने सबको चौंका दिया. राजन ने साफ कहा- ऐसा नहीं है कि हम कभी अपने कदमों से बाजार को चौंकाएंगे नहीं!

शेयर बाजार को सदमा लगा और रेपो दर में बढ़ोतरी की खबर सुनने के कुछ मिनटों के अंदर सेंसेक्स सवा छह सौ अंक की चोट खा गया, हालांकि बाद में जब राजन की सफाई से सेंसेक्स निचले स्तरों से थोड़ा संभला. मुद्रा बाजार में भी सुबह डॉलर की कीमत 62 रुपये के आसपास थी, मगर घोषणा के तुरंत बाद डॉलर 62.60 रुपये तक चला गया.

फिक्की की अध्यक्षा नैनालाल किदवई बैंकिंग क्षेत्र की बड़ी हस्ती हैं. उन्होंने भी अपने बयान में कहा, रेपो दर में 0.25 % की बढ़ोतरी हमारे लिए चौंकानेवाली बात रही. उन्होंने कहा कि मौजूदा औद्योगिक धीमेपन के मद्देनजर रेपो दर में कटौती से लोगों का उत्साह बढ़ता. मगर रेपो दर में इस वृद्धि के लिए राजन ने ऊंची महंगाई दर का वही तर्क दोहराया है जो इससे पहले डी सुब्बाराव का रहा है. इस बारे में किदवई कहती हैं कि महंगाई दर में हाल में फिर से वृद्धि हुई है, वह मुख्य रूप से खाद्य पदार्थो के दाम बढ़ने के चलते है. ऐसी खाद्य महंगाई पर नियंत्रण तभी संभव है जब कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला में बुनियादी सुधार किये जायें और कृषि में निवेश करके उत्पादकता बढ़ायी जाये.

व्यक्तिगत रूप से मैं यही मानता रहा हूं कि महंगाई के इस भूत को ऊंची ब्याज दरों के मंत्र से कोई डर नहीं लगता. इसी भूत से डर कर सुब्बाराव ने ब्याज दरों को पहले बढ़ाया, फिर ऊंचे स्तरों पर बनाये रखा और घटाने का सिलसिला शुरू करने में हद से ज्यादा देरी की. पर हमने देखा कि महंगाई पर नियंत्रण पाने में उनकी यह नीति बुरी तरह विफल रही. लेकिन अर्थशास्त्रियों का यह तर्क भी अपनी जगह महत्व रखता है कि चाहे महंगाई किसी भी वजह से ऊपर हो, आप ब्याज दरों को महंगाई दर से नीचे तो नहीं ही ला सकते. यह एक तरह से किसी को पैसा मुफ्त में देने जैसा होगा, या फिर शायद उल्टे ऋण लेने पर सब्सिडी देने जैसा!

जाहिर है, आनेवाले दिनों में राजन को महंगाई पर नियंत्रण बनाम विकास में तेजी की उलझन का जवाब तलाशना है. वे बखूबी समझते होंगे कि विकास दर को ऊपर लाने के लिए ब्याज दरों में कटौती जरूरी है, लेकिन महंगाई दर ऊंची रहने के चलते ब्याज दरों में कटौती इतनी आसान भी नहीं है. इस मामले में सुब्बाराव की नीति को विफल कहते हुए भी मेरी सहानुभूति उनके साथ है. लेकिन ऐसी सहानुभूति से विकास दर ऊपर नहीं बढ़ती और विकास दर बढ़े बिना भारतीय अर्थव्यवस्था की समस्याओं का निदान नहीं होने वाला.

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