हर रोज अखबार पढ़ कर मन में यही सवाल उठता है कि क्या हम इतने गंदे समाज में सांस ले रहे हैं. मुंबई में पत्रकार के साथ गैंग रेप, लातेहार में पुलिसकर्मी के साथ, हर रोज कहीं न कहीं यह घटना घटित हो रही है.
इतना सामाजिक पतन क्यों हो रहा है? यह घिनौनी मानसिकता की उपज है. मेरा अनुमान है कि समाज का लगभग आधा हिस्सा शराब या कोई न कोई नशा करता है. ये लोग अपना मानसिक संतुलन खोये हुए होते हैं, जिन्हें हमेशा तलब की दरकार होती है. इन्हें अच्छे–बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता.
दूसरे की जिंदगी बरबाद हो या आत्मसम्मान नष्ट हो जाये, इससे वहशियों को क्या लेना–देना! इन्हें तो अपनी मनमानी से मतलब है. दिल्ली के बाद तो ऐसी घटनाओं की बाढ़ आ गयी है. इन दरिंदों को डर भी क्यों हो? कानून तो मंथर गति से चलता रहता है, जो ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देता है.
चित्रलेखा सिंह, सर्वोदय नगर, रांची