हिंदी मेरी भाव-भावना की भाषा है, मेरी पहचान है, मेरी अस्मिता और सम्मान है. जिस तरह मां बोलना-चलना सिखाती है, उसी तरह मातृभाषा हिंदी ने भी मुझे मेरे सृजन का पहला पाठ पढ़ाया. ऊंचे-नीचे संघर्ष के रास्तों पर मुङो अध्ययनशील बनाकर चलना सिखाया.
आज मैं कह सकती हूं कि हिंदी मेरी दूसरी मां है. कभी-कभी मन विचलित होता है, जब भाषा के विवाद को लेकर बड़े-बड़े सत्ताधीशों, बुद्धिजीवियों को बहस करते देखती हूं. जो भाषा हमें प्रबुद्ध बनाती है, समाज में अपनी पहचान हेतु सक्षम बनाती है, वह विवाद का कारण कैसे हो सकती है? मां चाहे जिस भाषा में बोला जाये, उसका अर्थ एक ही होता है. संसार का सारा ज्ञान हमारी भाषा में निहित है. इस लेख को कंप्यूटर पर टाइप करते हुए भी गौरवान्वित हूं कि मैं हिंदी भाषा में अपनी बात आप तक पहुंचा सकती हूं.
पद्मा मिश्र, जमशेदपुर