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भारत-चीन संबंधों में संतुलन की चुनौती

‘भारत और चीन दो देह, किंतु एक आत्मा हैं’- ये शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग से बीते साल जुलाई में ब्राजील में कहे थे. उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के समूह ‘ब्रिक्स’ के सम्मेलन में शिरकत के दौरान सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार चीन के राष्ट्राध्यक्ष से कहे ये शब्द मोदी के आत्मविश्वास […]

‘भारत और चीन दो देह, किंतु एक आत्मा हैं’- ये शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग से बीते साल जुलाई में ब्राजील में कहे थे. उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के समूह ‘ब्रिक्स’ के सम्मेलन में शिरकत के दौरान सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं में शुमार चीन के राष्ट्राध्यक्ष से कहे ये शब्द मोदी के आत्मविश्वास के परिचायक तो थे ही, विश्व की दो बड़ी और प्राचीन सभ्यताओं के बीच 20वीं सदी में बनी दूरियों को पाटने की कोशिश के रूप में भी महत्वपूर्ण साबित हुए.
चीनी राष्ट्रपति बीते साल सितंबर में भारत आये तो उन्होंने मोदी के इन शब्दों को याद किया और कहा कि ये शब्द दोनों देशों के आपसी रिश्तों का पता देते हैं. प्रधानमंत्री मोदी की चीन यात्रा पारस्परिक विश्वास के इसी वातावरण में हो रही है. उन्होंने उम्मीद जतायी है कि उनकी यात्रा एशियाई देशों के बीच संबंधों के मामले में मील का पत्थर साबित होगी.
हालांकि, 21वीं सदी के वैश्वीकृत समय में, जब राष्ट्रों की प्रतिद्वंद्विता का मैदान युद्धक्षेत्र से व्यापार-क्षेत्र में खिसक आया है, चीन के साथ नये सिरे से रिश्ता बनाते वक्त भारत को वैश्विक संबंधों के मामले में कायम उस पुरानी सोच से भी टकराना होगा, जो मानती है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं. विदेश-संबंधों के जानकर भी कहते हैं कि दो आर्थिक महाशक्तियों को या तो टकराव की स्थिति में रहना होता है या फिर एक को दूसरे का प्रभुत्व स्वीकारना पड़ता है. भारत के लिए चीन के साथ नये रिश्तों की बहाली में मुख्य चुनौती इस सोच को पीछे छोड़ने की भी है.
सीमा पर विवाद, अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती व्यापारिक मौजूदगी, पाकिस्तान से मिल कर मध्य एशिया तक पहुंच बढ़ाने की चीनी युक्ति, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम के साथ मेकोंग उपक्षेत्रीय परियोजना के जरिये भारत के बरक्स आर्थिक प्रभुत्व बढ़ाने की चीनी पहल कुछ ऐसी बातें हैं जो संबंधों की नयी रूपरेखा तय करते वक्त भारत के लिए लक्ष्मणरेखा बनेंगी.
भारत को जहां चीन के साथ व्यापार में संतुलन बनाना है, वहीं यह भी सुनिश्चित करना है कि वह एक ऐसे राष्ट्र में तब्दील न हो जिसे चारो ओर से एक प्रतिद्वंद्वी राष्ट्र से दोस्ताना संबंध रखनेवाले राष्ट्र घेरे हुए हों. प्रधानमंत्री की चीन यात्रा की सफलता को इन दो सिरों से भी परखा जायेगा.

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