आज राजनीति में पाक-साफ छविवाले लोगों को ढूंढ़ पाना मुश्किल है. पर सत्ता के शीर्ष पदों पर आसीन नेताओं से कानूनी खानापूरी की उम्मीद तो अब भी की जाती है. झारखंड के कृषि मंत्री योगेंद्र साव वारंटी हैं. अदालत ने 20 मार्च को उनके खिलाफ वारंट जारी किया है. 27 जुलाई को अदालत से इश्तेहार भी जारी हुआ. साव ने इस मामले में अग्रिम जमानत के लिए अदालत में अरजी भी दायर नहीं की थी.
उन्हें पुलिस कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. जनप्रतिनिधि होने के नाते योगेंद्र साव की जिम्मेवारी है कि वह आत्मसमर्पण कर जमानत लें. पुलिस सुरक्षा के बीच साव का घूमना कानूनी मशीनरी के फेल होने के समान हैं. अगर सरकार के मंत्रियों का रवैया इस प्रकार का होगा तो बाकी नेताओं और अफसरों से क्या उम्मीद की जा सकती है. राज्य में बार-बार कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने की सरकार दुहाई देती रहती है. क्या उसे अपने मंत्रियों का ऐसा आचरण नजर नहीं आता? दरअसल, यह मामला नियमों के उल्लंघन का कम, बेपरवाही का ज्यादा है.
सत्ता की हनक ही ऐसी है कि एक बार इस पर आसीन हो गये, तो फिर बाकी दुनिया की परवाह जरा कम हो जाती है. झारखंड के मंत्री योगेंद्र साव तो एक उदाहरण मात्र हैं. राजनीति की दुनिया में ऐसे बहुतेरे मंत्री, सांसद और विधायक मौजूद हैं जो अपने ऊपर चल रही अदालती कार्यवाही को नजरअंदाज करते रहते हैं. कई तो अदालती आदेश तक को ठेंगा दिखा कर खुलेआम सामान्य गतिविधियों में लिप्त रहते हैं. विदित है कि इस प्रकार की घटनाओं के मद्देनजर ही सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने एक सुनवाई के दौरान अदालत से सजा पाये सांसद-विधायकों की सदस्यता खत्म करने और जेल में बंद होने पर चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का आदेश दिया था.
हालांकि दागी जनप्रतिनिधियों पर दिए गए फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर हुई है और अभी यह मामला सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के अधीन है. लेकिन समाज में स्वच्छ छवि के नेताओं की प्रतिष्ठा हमेशा से होती रही है और पाक-साफ छवि के जनप्रतिनिधि ही समाज और देश को नयी दिशा देने में समर्थ हो सकते हैं. झारखंड को वर्तमान हालात में ऐसे नेताओं की ही जरूरत है.