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प्यार की परिभाषा को सम युवा
रोज डे, प्रपोज डे से चला प्रेम का सुहाना सफर हफ्ते भर बाद आज अपने आखिरी पड़ाव वेलेंटाइंस डे पर आ पहुंचा है. एक ऐसा दिन जब प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे के जीवन भर सहयोगी बने रहने का वादा करते हैं. आपसी प्रेम का इजहार करते हैं और वर्ष भर की खुशियां पलभर में ही समेटने […]
रोज डे, प्रपोज डे से चला प्रेम का सुहाना सफर हफ्ते भर बाद आज अपने आखिरी पड़ाव वेलेंटाइंस डे पर आ पहुंचा है. एक ऐसा दिन जब प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे के जीवन भर सहयोगी बने रहने का वादा करते हैं. आपसी प्रेम का इजहार करते हैं और वर्ष भर की खुशियां पलभर में ही समेटने को बेचैन रहते हैं. उनका इस प्रकार पार्को में बैठ कर खुलेआम प्यार का इजहार करना कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को नागवार गुजरता है. परिणाम विरोध और हिंसा तक पहुंच जाता है.
विरोधियों को एक मौका मिल जाता है आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति पर हमला करने का. वे तर्क देते हैं कि यह पाश्चात्य की अपसंस्कृति है. जिन युवाओं पर देश का भार है, जब वही अपसंस्कृति को अंगीकार करेंगे, तो वे आनेवाली पीढ़ी को क्या सबक सिखायेंगे? यह उनका तर्क है, लेकिन यह तर्क कितना संगत है, यह लोगों की समझ से परे है. यह समझ में नहीं आता कि आखिर कोई संस्कृति खराब कैसे हो सकती है.
खराब वे होते हैं, जो संस्कृति और प्रेम की परिभाषा अपने लिहाज से गढ़ते हैं. लोग इसे क्यों भूल जाते हैं कि जब आपकी संस्कृति को दूसरी संस्कृति के लोग अंगीकार करते हैं, तो आप उसमें खुद को सम्मानित महसूस करते हैं. वहीं, जब आपकी संस्कृति के लोग दूसरी संस्कृति के चलन को स्वीकारते हैं, तो आप बौखला जाते हैं. आखिर क्यों? आप अपने हिसाब से किसी संस्कृति की परिभाषा क्यों गढ़ रहे हैं? यदि किसी खास दिन से दुनिया भर में प्रेम का संचार होता है, तो विरोधियों को दर्द क्यों होता है? क्या सिर्फ नफरत और कट्टरता से ही दुनिया चलती है? जो लोग विरोध करते हैं, वे पहले प्यार की परिभाषा सम, फिर विरोध करें.
सुधीर कुमार, गोड्डा
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