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हमरी अटरिया पे तो आते उम्मीदवार जी!

भाइयो और बहनो! मैं एक आम मतदाता हूं. खाता भी हूं और खिलाता भी हूं. गले तक पेट भले न ठंसा हो, पर किसी का मोहताज भी नहीं. काजू बर्फी से भले न खातिरदारी कर सकूं, पर चाय-पानी भी न करा सकूं, ऐसे भी हालात नहीं. लेकिन न जाने क्या बात है कि कोई उम्मीदवार […]

भाइयो और बहनो! मैं एक आम मतदाता हूं. खाता भी हूं और खिलाता भी हूं. गले तक पेट भले न ठंसा हो, पर किसी का मोहताज भी नहीं. काजू बर्फी से भले न खातिरदारी कर सकूं, पर चाय-पानी भी न करा सकूं, ऐसे भी हालात नहीं. लेकिन न जाने क्या बात है कि कोई उम्मीदवार मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक ही नहीं देता. मुङो चंद लम्हों की मेजबानी का मौका तक नहीं देता.

काश! मैं बेगम अख्तर होता. हमरी अटरिया पे आ जा रे उम्मीदवरवा देखा-देखी तनिक हो जाये.. गाकर उसे बुला लेता. मोदीजी ने चाय को राष्ट्रीय पेय बना दिया है, कम से कम उसी को आकर पी जाता. तरह-तरह का खर्चा किया है, मेरे संग थोड़ी-सी ‘चाय पर चर्चा’ भी कर जाता. वो ये कहता, मैं वो कहता.

वो दावा करता, मैं उसे झुठलाता. वो वादा करता, मैं मुस्कराता.. क्या खूब गुजरती, जब मिल बैठते हम तीन यार. मैं, वो और चाय. अफसोस! ये हो न सका. आज हमारे शहर में वोट पड़ने जा रहा है, लेकिन किसी उम्मीदवार को रूबरू देख तक न सका. वो तो सिर्फ होर्डिग, अखबार और टीवी पर नजर आते हैं. या फिर फासलों से गुजरते रहते हैं और हम बस उनके कदमों की आवाज सुनते रहते हैं. हां, ये बात दीगर है कि दिनभर उनके चेले मोहल्ले में गदर मचाये रखते हैं. दे नारे पर नारा.. कभी बाइक रैली, तो कभी पदयात्रा. पता नहीं इतना जोश उनमें आता कहां से है? ये अंदर की बात है या चाय नामक पेय से आगेवाले पेय की आग है? जो हो, चेलों से क्या शिकायत? आज इसके हैं, तो कल उसके हैं. गंजेड़ी यार तो बस दम लगा कर खिसके हैं. गिला चेलों से नहीं, मुङो तो उम्मीदवारों की बेरुखी ने मारा.

ये उम्मीदवारों का कसूर है कि समझ रहे सबको करीना कपूर हैं. घर-घर घूमना छोड़, जिसे देखो वोटर को मिसकॉल नंबर बांट रहा है- मिस कॉल दो और सदस्य बनो. मिसकॉल करो और फलां उम्मीदवार को अपना समर्थन दो. मानो करीना कपूर की तरह वोटर भी गाने लगेगा- मैं कब से हूं रेडी तैयार, पटा ले सैंया (उम्मीदवार) मिसकॉल से.. जनाब! किस दुनिया में हैं आप? हमको अइसा-वइसा वोटर नहीं समझना. हमको पटाने के लिए पहले तुमको पटना होगा, हमसे सटना होगा. तुम चाय न पिलाओ, चलेगा. पर मेरी चाय पीने आना पड़ेगा. तुम होगे बारह गांव के चौधरी, अस्सी गांव के राव, पर अपने काम न आओ तो ऐसी-तैसी में जाव. भइया, यहां काम का मतलब न ठेका है, न दलाली है, अपने को तो बस इतने से वास्ता कि नेता अपने खेत की मूली है. विकास तो है बाद की बात, पहले मुङो मिले उसका साथ. जो मिसकॉल से नहीं पटाये, बल्कि एक फोन कॉल पर खुद दौड़ा चला आये. उम्मीदवार हो तो हमसे ही उम्मीद न लगाओ, कुछ हमारी उम्मीदों पर भी खरा उतरो. तुममें से किसी ने झलक तक तो दिखलायी नहीं और हमसे वोट पाने की उम्मीद करते हो? भाई क्यों मजाक करते हो.

सत्य प्रकाश चौधरी

प्रभात खबर, रांची

satyajournalist@gmail.com

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