ऐसे वक्त में जब कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है, उसके खिलाफ किताबों के जरिये रहस्योद्घाटन का एक सिलसिला सा चल निकला है. इसमें सर्वाधिक चर्चा बटोरनेवाली किताब पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह की ‘वन लाइफ इज नॉट एनफ’ रही, जिसमें उन्होंने बताया है कि 2004 में सोनिया गांधी ने पीएम पद लेने से इनकार अंतरात्मा की आवाज पर नहीं, बल्कि राहुल गांधी के कहने पर किया था.
इसका अर्थ यह निकाला गया कि यह सोनिया का त्याग नहीं बल्कि एक दिखावा था. नटवर सिंह खुश हैं कि उनकी किताब की 50 हजार प्रतियां हाथों-हाथ बिक गयीं और वे एक नयी किताब लिखने में जुट गये हैं.
इससे पहले पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ चुनावी वक्त में आयी थी, जिसमें बताया गया कि मनमोहन तो कहने भर को पीएम हैं, कैबिनेट तो सोनिया गांधी चलाती हैं. इसी कड़ी में अब मनमोहन सिंह की पुत्री दमन सिंह की किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल, मनमोहन एंड गुरशरण’ आयी है, जिसमें कहा गया है कि मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री नहीं थे. एक और किताब आयी है, ‘माय इयर्स विद राजीव एंड सोनिया’. लेखक हैं पूर्व केंद्रीय गृह सचिव आरडी प्रधान और किताब में कहा गया है कि राजीव गांधी के पीएम रहते लिट्टे का जासूस 10-जनपथ में घुस आया था.
मतलब यह कि राजीव की हत्या में कुछ दोष उनकी लापरवाही का भी है. परंतु, ये किताबें सचबयानी की शर्त की अनदेखी करती हैं. सच बोलने के लिए तटस्थ होना जरूरी है. जैसे दमन सिंह का मनमोहन सिंह की संतान होना पिता के प्रधानमंत्रित्व के बारे कहे गये सच को पक्षपाती बना सकता है, वैसे ही संजय बारू को दोबारा मीडिया सलाहकार न बनाया जाना उनके सत्य को संदेहास्पद बना सकता है.
नटवर सिंह के कथन में सत्य चाहे जितना हो, उसमें नैतिक तेज नहीं है. इसी तरह आरडी प्रधान के सच को यह पूछ कर प्रश्नांकित किया जा सकता है कि जासूस होने की जानकारी को उन्होंने राजीव गांधी के जीवित रहते या अब से पहले उजागर क्यों नहीं किया? कांग्रेस के दुर्दिन के वक्त उसके विरुद्ध रहस्योद्घाटन का साहस बटोरनेवालों को याद रखना चाहिए कि सत्य हमेशा बोले जाने से पहले पात्रता की मांग करता है.