मिथिलेश कु. राय
युवा कवि
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क्या आपसे भी 20-25 साल बाद के दृश्यों का अनुमान लगाने को कहा जाता है? क्या आप उन दृश्यों को साफ-साफ देख सकते हैं? नहीं देख सकते. लेकिन यह जरूरी नहीं कि आज आप जैसा अनुमान करेंगे, कल का दृश्य बिलकुल वैसा ही हो. इसलिए सिर्फ अनुमान से मनुष्यों को संतोष नहीं हुआ.
मनुष्यों ने टाइम मशीन की परिकल्पना की और उसके सहारे समय के पार जाने की काल्पनिक कोशिश करने लगा. यह मजेदार होने के साथ-साथ हैरतअंगेज भी था कि काल्पनिक ही सही, समय के पार जाकर यह देखने की कोशिश की जा सकती है कि वहां क्या पक रहा है! लेकिन टाइम मशीन भी तो अनुमान पर ही आधारित था न! जबकि मनुष्य ठीक-ठीक यह जानने का इच्छुक है कि 20-25 और 100 साल के बाद इस कैनवास पर हमारे समाज का चित्र कैसा होगा.
इस बीच कई साधारण लोगों ने समय के पार से संबंधित असाधारण प्रश्न मेरे सामने रख दिये. सबकी तरह ठीक-ठीक मैं भी यह नहीं कह सकता कि पृथ्वी पर उस समय का वातावरण कैसा होगा. लेकिन इन लोगों के ऐसे भोले प्रश्नों को नकार कर निकल जाना उन्हें कष्ट पहुंचाने के बराबर है क्योंकि समय के पार से संबंधित ज्यादातर प्रश्न मेरे पास दुख में अभिव्यक्त हुए.
तब मैं ठंडे दिमाग से काम लेता हूं. अपनी कल्पना के सारे घोड़े दौड़ा देता हूं और वहां से ऐसे जवाब खोजकर लाता हूं, जो लोगों को तनिक भरोसा दें. लेकिन पिछले दिनों तीन बेटियों के एक पिता ने मुझसे यह सवाल पूछा कि क्या 20-25 साल बाद भी दान-दहेज के बारे में सोचकर पिता चिंतित रहेंगे. क्या वे आज की तरह ही बेटियों के ब्याह को लेकर परेशान रहेंगे और लड़की की विदाई में दिये जानेवाले सामानों को जोड़ने के बारे में सोचेंगे?
उन्होंने पूछा कि क्या तब भी बेटियों के घरवाले उनके घर से बाहर कदम रखते ही तब तक परेशान रहेंगे, जब तक कि वे सुरक्षित लौट नहीं आतीं. या यह डर 100 प्रतिशत शिक्षा के लक्ष्य को पूरा करने के साथ ही खत्म हो जायेगा. तीन बेटियों के पिता को मैंने सब अच्छा ही अच्छा दिखाया. इस भरोसे से ही उसके होंठों पर मुस्कान आयी कि दृश्य तब सुहाना हो जायेगा और इस तरह की कोई चिंता नहीं रह जायेगी.
परसों एक किसान ने मेरी तरफ यह प्रश्न उछाल दिया कि क्या कुछ ही वर्षों के बाद महीना का भेद समाप्त हो जायेगा? मसलन जेठ और भादो में कोई अंतर नहीं रह जायेगा? थोड़ी सी बारिश जेठ में भी हो जायेगी और थोड़ी सी भादो में भी. बाकी सारे महीने जेठ सरीखी धूप ही रहेगी?
उसी किसान का यह भी प्रश्न था कि क्या 50 साल बाद हम अपने खेतों में जितना उर्वरक डालेंगे, खेत से हमें उतने ही अन्न मिलेंगे? प्रश्न बड़े भयावह थे. लेकिन जीवन तो आशा का नाम है न! मैंने उन्हें कोमल जवाब दिया. लेकिन उनके प्रश्न से डर मुझे भी लग रहा था. क्या पचास साल बाद खेत उतने ही अन्न देंगे, जितना उन्हें उर्वरक दिया जायेगा? मैंने इस समय से उस समय को देखा, तो थरथरा कर रह गया.