अविनाश गोडबोले
असिस्टेंट प्रोफेसर, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी.
avingod@gmail.com
एक अक्तूबर, 1949 को आपनी मुक्ति (लिबरेशन) पानेवाला चीन अब 70 साल का हो चुका है. इस सत्तर साल में चीन ने बहुत सारी मंजिलें हासिल की हैं और अपने विकास के रास्ते में अनेक चुनौतियां पायी हैं.
इनमें से कुछ चुनौतियां प्राकृतिक, कुछ विदेशों से निर्माण की गयी और बाकी कुछ उसकी अपनी आंतरिक चुनौतियां हैं, जो राजनीतिक कारणों से निर्मित हैं. आज का चीन एक आर्थिक महासत्ता है और जल्द ही वह राजनीतिक स्तर पर अमेरिका को चुनौती देकर दुनिया की सबसे बड़ी और मजबूत सत्ता बनने की इच्छा रखता है.
चीन में हुए परिवर्तन उसकी अर्थव्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, संरक्षण प्रणाली, उसकी वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय संशोधन क्षमता और उसकी कूटनीति में प्रतीत होती है. चीन जो ठान लेता है, वह कर देता है और उसी तरह से चीन का अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति के केंद्र स्थान तक जाना तय लग रहा है. सवाल बस यही है कि क्या यह शांतिपूर्ण तरीके से होगा या उभरनेवाली महासत्ता और झुकनेवाली महासत्ता यानी अमेरिका के बीच युद्ध होगा.
70 साल की उपलब्धि पर चीन ने एक शानदार समारोह का आयोजन किया था, जिसमें उसने अपनी सामरिक और राष्ट्रीय उपलब्धियों का प्रदर्शन किया.
इसमें शी जिनपिंग ने यह ऐलान भी किया कि दुनिया की कोई भी ताकत चीन के विकास और शक्ति की उपलब्धियों में बाधा नहीं डाल सकती. चीन का सामरिक आधुनिकीकरण पिछले कई सालों से हो रहा है और पिछले दस सालों में इन्फॉर्मेशन की युग के युद्ध के रूप में हो रहा है, जिसमें छोटा सैन्य लेकिन प्रभावी समन्वय और तकनीकी प्रणाली और प्रभावी खुफिया सूचना और अन्य प्रकार के प्रयोग बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है.
कुछ ही दिन पहले चीन ने ‘नये जमाने में चीन और दुनिया’ नामक एक श्वेतपत्रिका जारी की, जिसमें उसने अपनी राष्ट्रीय उपलब्धियों का लेखा-जोखा पेश किया.
इस श्वेतपत्रिका में चीन के भविष्य में होनेवाले विकास के बारे में भी विचार रखे गए और दुनिया के बारे में चीन क्या सोच रहा है, इस बात को भी पेश किया गया. यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि कई सालों तक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के बारे में और दुनिया के नाजुक विषयों के बारे में चुप्पी बनाये रखनेवाला चीन अब ऐसा रुख अपना रहा है.
श्वेतपत्रिका में यह भी है कि कैसे चीन की 1952 की 9 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था 2018 में 13.6 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंची है. वह इस बारे में गर्व करता है कि उसने यह किसी और का अनुकरण करके नहीं, बल्कि अपने आत्मविश्वास और लगन से हासिल किया है.
लेकिन साथ ही में अब चीन अपने विकास के तरीके को चाइना मॉडल के रूप में पेश करने लगा है. यह बात पहली बार 2017 के पार्टी कांग्रेस में पार्टी महासचिव और राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने रखी थी. उस वक्त भी तमाम विशेषज्ञ चौकन्ने हुए थे, लेकिन उसके बाद यह बात फिर नहीं छेड़ी गयी.
अब ऐसा लग रहा है कि चीन अपने विचार और सरकार प्रणाली का फिर से विकासशील देशों में प्रचार करना चाहता है, जो वह माओ के कम्युनिस्ट काल में कर रहा था.
चीन कितनी भी बड़ी सैन्य शक्ति बन जाये या कितनी भी बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाये, इस समय चीन का सबसे बड़ा संकट उसकी आंतरिक प्रणाली में पैदा हो रहा है. चीन की एक पक्ष व्यवस्था में अधिनायकवाद बढ़ता जा रहा है, जो कि शी जिनपिंग के काल में सबसे ज्यादा हुआ है.
पिछले छह साल में चीन ने अपने बड़े—बड़े रजनेताओं को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार और बर्खास्त किया है. इससे स्पष्ट है कि जो नेता शी जिनपिंग विरोधी गुट में थे, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. यह भी कहा जा रहा है कि दरअसल भ्रष्टाचारी होना गुनाह नहीं है, लेकिन पार्टी के नेतृत्व के विपरीत सोचना बड़ा गुनाह है और अगर कोई ऐसा करेगा, तो उसको भ्रष्टाचारी साबित करना कोई बड़ी बात नहीं है.
चीन शिनजियांग और तिब्बत में लोगों के मूलभूत धार्मिक अधिकारों की अवहेलना कर रहा है और शिनजियांग में तो अब चीन को इस्लाम पसंद ही नहीं.
वहां कई प्रतिबंध हैं और लोगों को अपना धर्म भी अपने तरीके से निभाने की मंजूरी नहीं है. हांगकांग में चीन युवा आंदोलनकारियों पर गोलीबारी करने से नहीं हिचकिचाता और हांगकांग हस्तांतरण संधि के तहत किये गये अपने वादों से खुलेआम मुकर रहा है. चीन के लिए अपनी जनता की कीमत नहीं है.
क्या यही चाइना मॉडल है और कैसे दुनिया उसके साथ व्यवहार करे, यह सबको सोचना होगा. यह सत्य है कि एक समय चीन शोषित और दबा हुआ देश था. लेकिन इतिहास में जो गलतियां दूसरों ने की थीं, वही अब चीन अपनी खुद की जनता के साथ कर रहा है.