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यह सावन हरा को कचनार करेगा!

मिथिलेश कु. राय युवा कवि mithileshray82@gmail.com कक्का कह रहे थे कि अगर भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर खिसकता जा रहा है, तो अपनी हरियाली को बचाये रखने के लिए पेड़-पौधे को सावन का इंतजार रहता होगा. वृक्षों को सावन का आभास अषाढ़ में ही हो जाता है और वे तभी से हरेपन में लौटने […]

मिथिलेश कु. राय

युवा कवि

mithileshray82@gmail.com

कक्का कह रहे थे कि अगर भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर खिसकता जा रहा है, तो अपनी हरियाली को बचाये रखने के लिए पेड़-पौधे को सावन का इंतजार रहता होगा. वृक्षों को सावन का आभास अषाढ़ में ही हो जाता है और वे तभी से हरेपन में लौटने के जतन शुरू कर देते हैं.

सावन आने से पहले ही वे अपने सारे पीले पत्ते त्याग चुके होते हैं. वे कह रहे थे कि इसे सावन के इंतजार में वृक्षों द्वारा बनने-ठनने की एक प्रक्रिया मान लो. जब सावन आ जाता है, वे हरा कचनार होने की खुशी में झूमते रहते हैं.

हम पुलिया पर बैठे हुए थे और पूरब की तरफ देख रहे थे. शाम का समय था और हौले-हौले पछिया बह रही थी. ऊपर काले-काले बादल के असंख्य टुकड़े एक ओर उड़े जा रहे थे. सामने के वृक्ष इसी खुशी में झूम रहे थे और चिड़िया घोंसले की तरफ लौटती हुई कोई गीत गा रही थी. मुझे भी यह नजर आ रहा था कि वृक्षों ने अपने सारे पीले पत्ते उतार दिये हैं.

उनके सभी पत्ते हरे थे और नये लग रहे थे. जब बारिश होगी, वे धुलकर चमकने लगेंगे. तब वृक्षों की विकास की गति में भी वृद्धि होगी. वे और अधिक हरे होंगे, ज्यादा घने और विशाल होंगे. यह उनके लिए सबसे अच्छे दिनों वाला महीना साबित होता होगा. बारिश की बूंदें उनके लिए जीवनी-शक्ति साबित होती होंगी.

कक्का यह बात अक्सर कहते हैं कि धरती के नीचे का पानी और नीचे जा रहा है, तो जड़ों को अपने पत्तों, टहनियों, डालियों और तनों को जिंदा रखने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती होगी. सावन का बादल इस नेक काम में उनका हाथ बंटाता होगा.

कक्का कह रहे थे कि जब बारिश का महीना आता है, सभी जीवों सहित समूची पृथ्वी का मन आह्लादित हो उठता है. उन्होंने समझाया- जब तुम बहुत प्यासे होते हो और तभी तुम्हें एक गिलास पानी मिल जाता है, तो कैसा लगता है? लगता है न कि जान में जान लौट आयी है? तृप्ति का वही एहसास बारिश का महीना इस धरती के लिए लेकर आता है.

जंगल में बादलों की तरफ देखकर मोर मगन होकर नाचने लगते हैं और गांव में किसान धन-रोपनी के गीत याद करने लगते हैं. मूसलाधार बारिश से उन्हें कुछ और याद नहीं आता. सिर्फ खेतों को कीचड़ बनाना याद रहता है और उसमें धान रोपने की धुन बजती रहती है. बारिश से उनकी आंखों में एक दृश्य बनता है, जिसमें हरे धान के विरवे की जड़ें बित्ते भर पानी में खड़े झूम रहे होते हैं!

तभी कक्का को उस कहावत की याद आ गयी और वे यह पूछने लगे कि भला इसका क्या मतलब निकलता है कि सावन के अंधे को सब हरा ही नजर आता है. कहने लगे कि सावन आ गया है. देख लो चारों तरफ.

तुम्हें दो चीजें प्रचुर मात्रा में मिलेंगी. एक तो बारिश का पानी और दूसरा पेड़-पौधे के रंग में जादुई बदलाव. कक्का यह तर्क लगा रहे थे कि जल जीवनी-शक्ति का द्योतक है और जीवनी-शक्ति को हरे रंग से परिभाषित किया गया है. कक्का सही कह रहे थे, हरा का संबंध तो जीवन की खुशियों से है ही और पानी उसे ही संरक्षित करता है!

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