तरुण विजय
वरिष्ठ नेता, भाजपा
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डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक ऐसे राजनेता हुए, जिनके जीवन का अधिकांश भाग शिक्षा, साहित्य, विज्ञान प्रसार तथा औद्योगिकीकरण का समर्पित रहा. लेकिन राष्ट्रीय घटनाक्रम ने कुछ ऐसी करवटें बदलीं कि वे कश्मीर की शेष भारत के साथ एकता और अखंडता के नाते ही ज्यादा जाने गये.
उनका जन्म 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता में हुआ था. उनके परिवार में अधिकतर सदस्य अपने पूर्वजों के ग्रीष्मकालीन बंगले (वर्तमान झारखंड के देवघर के पास मधुपुर) में छुट्टियाें के लिए जाते थे. बचपन में श्यामा प्रसाद भी लंबे समय की छुट्टियों में मधुपुर जाते थे और उनका पूरा परिवार ही देशभक्ति और अध्यात्म को समर्पित था.
उनके दादा गंगाप्रसाद मुखोपाध्याय बंगाल के पहले ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने संपूर्ण रामायण का बंगला में अनुवाद किया. उनके पिता आशुतोष मुखर्जी विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ माने गये, जिनकी गणित पर शोध अनेक विश्वविद्यालयों में पढ़ायी जाती थी. श्यामा प्रसाद के घर में बांग्ला के प्रति गहरी भक्ति थी. उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम रहकर बीए पास किया. गोल्ड मेडल मिला, पर पिता ने कहा कि एमए बांग्ला भाषा में करो. श्यामा प्रसाद ने अंग्रेजी की बजाय बांग्ला में एमए किया और उसमें भी प्रथम श्रेणी में प्रथम रहे. वे भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से बेहतर स्थान दिलाने के लिए हमेशा प्रयास करते थे.
वे 23 वर्ष की आयु में ही कलकत्ता विवि के बोर्ड के फैलो निर्वाचित हुए. साल 1926 में वे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन गये और 1927 में बैरिस्टर बनकर लौटे. उन्होंने कभी वकालत को अपना व्यवसाय नहीं बनाया. साल 1934 में वे तत्कालीन भारत के सबसे बड़े कलकत्ता विवि के कुलपति चुने गये तथा 1938 तक अर्थात दो कार्यकाल इस पद पर निभाये. उन्होंने कलकत्ता विवि को नया रूप दिया.
पहली बार बांग्ला भाषा में दीक्षांत भाषण कराया, जो उनके आमंत्रण पर कवि गुरु रबींद्र नाथ ठाकुर ने दिया. बंगलौर में इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के भी अध्यक्ष थे. वहां उनका परिचय एक प्रो डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन से हुआ. उनकी प्रतिभा से प्रभावित श्यामा प्रसाद ने राधाकृष्णन को कलकत्ता विवि बुला लिया और यहां से डॉ राधाकृष्णन का वास्तविक स्वरूप निखरा, जिसके लिए वे सदैव डॉ श्यामा प्रसाद के कृतज्ञ रहे.
श्यामा बाबू ने कलकत्ता विवि में कृषि की शिक्षा प्रारंभ की और कृषि में डिप्लोमा कोर्स प्रतिष्ठित किया. विशेष रूप से युवतियों की शिक्षा के लिए उन्होंने स्थानीय सहयोगियों से दान लेकर विशेष छात्रवृत्तियां प्रारंभ कीं.
उनके नेतृत्व में कलकत्ता विवि देश का ऐसा पहला विवि बना, जहां शिक्षक प्रशिक्षण विभाग खुला तथा चीनी और तिब्बती अध्ययन केंद्र खुले. उन्होंने अपने पिता आशुतोष मुखर्जी के नाम पर भारतीय ललित कला संग्रहालय स्थापित किया और केंद्रीय ग्रंथागार बनवाया, जहां शोध और अध्ययन की आधुनिकतम सुविधाएं थीं.
उन्होंने भारत में पहली बार बांग्ला, हिंदी और उर्दू माध्यम में बीए के पाठ्यक्रम आरंभ किये तथा बांग्ला में विज्ञान की शिक्षा का समाज के विकास में क्या उपयोग होना चाहिए, इसके लिए उन्हाेंने एप्लाइड केमिस्ट्री विभाग खोला, ताकि विश्वविद्यालयीन शिक्षा को सीधे औद्योगिकीकरण से जोड़ा जा सके.
उन्हें महाबोधि सोसाइटी बोधगया का अध्यक्ष चुना गया. जब बुद्ध के पवित्र अवशेष तत्कालीन बर्मा से उ थांट लेकर बोधगया आये, तो उन अवशेषों को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने ग्रहण किया था.
साल 1943 के भयंकर अकाल में 30 लाख से अधिक भारतीय भूख से मारे गये थे. यह चर्चिल की कुटिल नीतियों के कारण मानव निर्मित अकाल था. उस समय श्यामा प्रसाद ने बहुत विराट स्तर पर राहत कार्य आयोजित किये.
उन्होंने बंगाल के अकाल पर जो आर्थिक कारणों की गवेषणा करते हुए प्रबंध लिखा, वह अनेक अर्थशास्त्रियों के शोध का हिस्सा बना. उनका श्री अरविंद के प्रति गहरा भक्तिभाव था. श्री अरविंद के निर्वाण के पश्चात श्री मां ने श्री अरविंद विवि की कल्पना की और उसका प्रथम कुलपति डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को नामांकित किया. उनकी वर्तमान बांग्लादेश और तत्कालीन पूर्वी बंगाल के महान राष्ट्रीय कवि काजी नजरुल इस्लाम से गहरी मित्रता थी.
जब नजरुल इस्लाम बीमार पड़े, तो श्यामा बाबू उन्हें कोलकाता अपने घर ले आये, जहां वह छह महीने उनके घर पर रहकर स्वास्थ्य लाभ करते रहे. बाद में ढाका पहुंचकर काजी नजरुल इस्लाम ने श्यामा बाबू को जो कृतज्ञता का लंबा पत्र लिखा, वह बांग्ला साहित्य की धरोहर माना जाता है.
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी पत्रकार और संपादक भी थे तथा उन्होंने 1944 में अंग्रेजी दैनिक ‘दि नेशनलिस्ट’ प्रारंभ किया. वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे और देशभर में प्रखर राष्ट्रीय विचारों का प्रसार किया.
लेकिन इस आंधी में उनकी विद्वता और उनके गहरे ज्ञान के कारण देश के सभी प्रमुख केंद्रीय विवि उन्हें दीक्षांत भाषण के लिए आमंत्रित करते थे. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने पटना विवि, आगरा और मैसूर विवि सहित देश के शिखरस्थ बाइस विश्वविद्यालयों में दीक्षांत भाषण दिये हैं. उनका अंतिम दीक्षांत भाषण 1948 में दिल्ली विवि में हुआ था.
उनकी ज्ञान संपदा तथा अकादमिक करियर विराट और महत्वपूर्ण है. आशा है कि सरकार देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के शिक्षा संबंधी विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए श्यामा प्रसाद पीठ एवं श्यामा प्रसाद विचार अध्ययन केंद्र स्थापित करेगी.