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बैंकों को राहत

बीते वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के धीमा रहने का एक कारण यह भी था कि कई छोटे और मझोले कारोबारियों तथा सामान्य ग्राहकों को बैंकों और वित्तीय कंपनियों से कर्ज लेना मुश्किल हो रहा था. फंसे हुए कर्जों की वसूली न होने पाने की वजह से ये संस्थाएं भी मजबूर थीं. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों […]

बीते वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के धीमा रहने का एक कारण यह भी था कि कई छोटे और मझोले कारोबारियों तथा सामान्य ग्राहकों को बैंकों और वित्तीय कंपनियों से कर्ज लेना मुश्किल हो रहा था. फंसे हुए कर्जों की वसूली न होने पाने की वजह से ये संस्थाएं भी मजबूर थीं.

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय कंपनियों को इस मजबूरी से बाहर निकालने के लिए सरकार ने 70 हजार करोड़ रुपये (10 अरब डॉलर) की पूंजी उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट के इस प्रावधान का व्यापक स्वागत हुआ है, क्योंकि आठ प्रतिशत से अधिक दर से विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने तथा बैंकिंग व्यवस्था में सुधार के लिए बैंकों का पुनर्पूंजीकरण जरूरी हो गया है. पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही (जनवरी से मार्च, 2019) में आर्थिक वृद्धि की दर सिर्फ 5.8 प्रतिशत रही थी, जो कि पांच वर्षों में सबसे कम थी. रिजर्व बैंक ने फंसे हुए कर्ज की वसूली तथा बैंकों के प्रबंधन को ठीक करने के लिए अनेक दिशा-निर्देश जारी किये हैं.

इन नियमों में उन बैंकों को नये कर्ज देने की मनाही है, जिनके पास एक सीमा से अधिक धन नहीं है. फंसे हुए कर्ज का लगभग समूचा दबाव सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर है, जिनके 150 अरब डॉलर से अधिक धन की वसूली हो पाने में दिक्कतें आ रही हैं. यह स्थिति कई बरसों से दिये जा रहे खतरनाक और लापरवाह कर्ज तथा विभिन्न कारणों से परियोजनाओं के अधर में लटक जाने का परिणाम है. अब ठोस मात्रा में पूंजी मिलने से ऐसे बैंक नये कर्ज दे सकेंगे और अपने बही-खाते को दुरुस्त कर सकेंगे.

इससे उन गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं की भी क्षमता बढ़ेगी, जो अच्छी स्थिति में हैं. गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की समस्या से उबरने तथा कर्ज वसूली सुनिश्चित करने के लिए पिछले पांच सालों में अनेक कदम उठाये गये हैं. वित्तीय पारदर्शिता और अनुशासन बढ़ाने के प्रयास भी जारी हैं. कुछ सार्वजनिक बैंकों के परस्पर विलय के द्वारा संरचनात्मक बदलाव की प्रक्रिया भी चल रही है. इस सिलसिले की एक महत्वपूर्ण कड़ी बैंकों को समुचित पूंजी मुहैया कराना भी है.

बीते चार सालों में सरकार बैंकों को तीन ट्रिलियन रुपये (43.81 अरब डॉलर) दे चुकी है. इस संदर्भ में पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक ने एक स्वागतयोग्य घोषणा की है कि वह उन बैंकों को अतिरिक्त पूंजी मुहैया करायेगा, जो परिसंपत्तियों की खरीद करेंगे या गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को कर्ज देंगे. वित्तीय कंपनियों को सरकार ने भी छूट देने की घोषणा की है कि भविष्य में उन्हें बाजार में अपने कर्ज को बेचते समय अतिरिक्त पूंजी को अलग से नहीं रखना होगा.

देश में ऐसी करीब 10 हजार पंजीकृत कंपनियां हैं, जो लाखों परिवारों को कर्ज देती हैं, जो बैंकों से पैसे नहीं ले पाते. हालांकि, अभी भी बैंकिंग सेक्टर में सुधार की बहुत गुंजाइश है, लेकिन हालिया उपायों और पूंजी मिलने से बैंकों के जरिये अर्थव्यवस्था को बड़ी मदद मिलेगी.

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