आज हमारे देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली नरेंद्र मोदी सरकार का पहला बजट पेश करेंगे. इस बजट पर जहां बड़े-बड़े निवेशकों की निगाहें टिकी हुई हैं, वहीं देश की जनता को अपने ‘अच्छे दिनों’ के आने की आहट सुनाई दे रही है. ‘डेवलपमेंट और गुड गवर्नेन्स’ का सपना साकार होगा. लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा, पानी, बिजली इत्यादि के साथ अच्छी परिवहन व्यवस्था मिलेगी.
उनकी जिंदगी में नयी सुबह आयेगी. लेकिन पिछली सरकार से विरासत में मोदी सरकार को मिली है एक ऐसी अर्थव्यवस्था जो विकास की पटरी से उतर चुकी है. विकास दर लगातार गिर रहा है. जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमतें बेकाबू हो गयी हैं. जनता की उम्मीदों को पूरा करने के लिए इस बार एक महत्वाकांक्षी बजट चाहिए. इसके लिए पैसे कहां से आयेंगे?
पिछली सरकार के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री यह बतला चुके हैं कि पैसे पेड़ों पर नहीं उगते. बात कुछ हद तक सही भी है. करों की ऊंची दरों और कर कानूनों की पेचीदगी से देश परेशान है. करदाताओं के कर-दान क्षमता का अधिकतम उपयोग हो चुका है. घाटे की वित्त व्यवस्था की अपनी सीमाएं हैं. सुरक्षित सीमा के बाद मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाने पर मुद्रास्फीति और बढ़ेगी और मूल्यवृद्धि में और अधिक इजाफा होगा.
लेकिन महंगाई कम करने का सपना दिखाकर देश की सत्ता पर काबिज होनेवाली मोदी सरकार के सामने खुद को यूपीए सरकार से अलग साबित करने की चुनौती है. सच पूछिए तो वित्त मंत्री अरु ण जेटली को इस बार दो घोड़ों पर एक ही साथ सवारी करनी होगी. देखना है, अपनी इस अग्नि-परीक्षा में कहां तक कामयाब होते हैं.
प्रो जगदीश मिश्र, मानगो, जमशेदपुर