कश्मीर भारत की दुखती रग है और कोई सरकार इस पर कुछ करती नहीं दिख रही है. तभी तो ढाई दशक पहले कश्मीर से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों को पुनर्स्थापित करने का प्रयास न राज्य और न केंद्र सरकार ने किया. आज भी हजारों परिवार दयनीय स्थिति में जम्मू में रहने को मजबूर हैं. यह दुर्भाग्य है कि आज तक हमारी सरकारों ने इनके बारे में नहीं सोचा.
हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष ताकतें आज कहां हैं, वे इन बेसहारों के बारे में क्यों नहीं सोचतीं? इनकी जमीनें, मकान आदि इन्हें वापस क्यों नहीं दिलाये जाते? कश्मीरी पंडितों के प्रति बरती जा रही उदासीनता भारत के राजनीतिक वर्ग पर बड़े सवाल खड़े करती है. बहरहाल, कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा के प्रति बरती जा रही उदासीनता यह बताती है कि हमारी राजनीति में धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों की बातें वोट बटोरने का हथकंडे हैं.
विवेक कु द्विवेदी, राजधनवार