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गजब बदलता है खबरिया मौसम

अपने देश में मुख्य मौसम के साथ खबरों का भी एक मौसम होता है. देश में जब सिर्फ अखबार व रेडियो थे, तब मौसम बदलने में चौबीस घंटे तक लग जाते. लेकिन, जब से मुआ टीवी न्यूज चैनल आया है क्या गजब मौसम बदलता है! सुबह की खबर दोपहर होते-होते पुरानी लगने लगती है. शाम […]

अपने देश में मुख्य मौसम के साथ खबरों का भी एक मौसम होता है. देश में जब सिर्फ अखबार व रेडियो थे, तब मौसम बदलने में चौबीस घंटे तक लग जाते. लेकिन, जब से मुआ टीवी न्यूज चैनल आया है क्या गजब मौसम बदलता है! सुबह की खबर दोपहर होते-होते पुरानी लगने लगती है.

शाम तक तो लगता है कि ये भी कोई खबर है. कुछ महीना पहले गांव-गांव, गली-गली.. अबकी बार मोदी सरकार का मौसम आया कि जनता ने आजिज आकर मोदी की सरकार बनवा दी. उससे पहले मनमोहन सरकार के भ्रष्टाचार और उनकी नाकामियों का मौसम था. दिल्ली में मोदी सरकार बनने के बाद खबरें मिलनी कम हो गयीं, तो फिर मौसम बदला और उत्तर प्रदेश के अपराधों पर आकर थम गया. यहां आकर ये मौसम ऐसा थमा कि छोटी-मोटी खबरें गौण हो गयी हैं. इराक संकट, महंगाई, मोदी सरकार की कामयाबी-नाकामी छिटपुट बारिश की तरह सुर्खियों में जगह नहीं बना पा रही हैं.

कुल मिला कर यूपी के अपराध का मौसम चार्ट में सबसे ऊपर चल रहा है. सुबह-सुबह गजोधर भाई ने मॉनसून की बारिश के बीच मौसमनुमा समाचार सुनाया, तो मैं बोला मित्र यूपी बहुत बड़ा है. वहां पहले भी अपराध होते थे. हां, दिल्ली में सरकार बदलते ही इनको ज्यादा तरजीह मिलने लगी. इस पर गजोधर बोले, बात तो आपकी सही है.. लेकिन यूपी ही क्या पूरे देश के लोग संवेदनहीन हो गये हैं. हमारी आंखों का पानी ऐसे मर जायेगा, मुङो ये उम्मीद नहीं थी. जानते हैं बदायूं रेप कांड की हैवानियत से फैली सनसनी के बीच एक सोशल ग्रुप ने देश भर में रेप को लेकर आम लोगों की मानसिकता जानने के लिए खास प्रयोग किया.

यस, नो, मे बी नाम के इस ग्रुप ने इस प्रयोग के तहत सड़क किनारे काले शीशे वाली एक वैन खड़ी कर दी. वैन से एक महिला के चीखने की आवाज आ रही थी, और उसकी आवाज को दबाने की कोशिश करती पुरु ष की आवाज भी. दोनों तरह की आवाजें रेकॉर्ड की हुई थीं, लेकिन बाहर से लगता था जैसे वैन के अंदर महिला के साथ जबरदस्ती की जा रही हो. छिपे कैमरे गुजरते लोगों प्रतिक्रिया कैद कर रहे थे. ज्यादातर लोग ध्यान दिये बगैर आगे बढ़ गये. कुछ ने रु क कर जानने की कोशिश की, लेकिन फिर इस पचड़े में न पड़ना ही बेहतर समझा. मात्र तीन ऐसे लोग मिले जिन्होंने मदद की कोशिश की. सबसे बड़ी चिंता जो इस प्रयोग से उभरी, वह यह कि लोग इतने संवेदनहीन क्यों हो गये हैं? अब, दिल्ली में सरकार बदलने वालों को इस ओर भी गौर करना चाहिए. गजोधर की बात सुन कर मैंने कहा.. मित्र जैसे दिल्ली में सरकार बनाने के लिए माहौल दो साल पहले ही बनाना शुरू कर दिया गया था. अब यूपी-बिहार जैसे गैर भाजपा शासित राज्यों में भी माहौल बनाने का दौर चल रहा है. चिंता न करें अपराध तो सब जगह हो रहे हैं, लेकिन सरकार बदलने के साथ मीडिया को अपना फोकस बदलना पड़ता है..

बृजेंद्र दुबे

प्रभात खबर, रांची
brijendra.dubey10@gmail.com

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