ई-कबाड़ और इसके निस्तारण की ओर अभी हमारा ध्यान नहीं है. जिन इलेक्ट्रॉनिक सामानों का उपयोग हम कर रहे हैं, उनके खराब होने पर हम उन्हें कचरे में ही फेंकेंगे, फेंकते हैं भी, जबकि सबको पता है कि यह कचरा बेहद खतरनाक है.
भारत में मोबाइल फोन इंडस्ट्री को अपने पहले दस लाख ग्राहक जुटाने में करीब पांच साल लग गये थे, पर अब भारत में मोबाइल फोन की संख्या इंसानी आबादी के आंकड़ों से अधिक हो गयी है. ई-वेस्ट से वैसे तो किसी को कोई खास मतलब नहीं है, लेकिन जब यह बड़ी समस्या बन कर हमें नुकसान पहुंचायेगा, तब इसे आज नजरअंदाज करने की कीमत हमें चुकानी पड़ेगी.
इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कबाड़ में फेंके गये मात्र एक मोबाइल फोन में इस्तेमाल हुआ प्लास्टिक और विकिरण पैदा करने वाले कल पुर्जे सैकड़ों साल तक नष्ट नहीं होते. जाहिर है, हमारी तरक्की हमारे लिए मुसीबत के दरवाजे खोलने वाली है और हम इसे लेकर जरा भी सचेत नहीं हैं.
अवधूत कुमार झा, मधुपुर, देवघर.