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शहरी नक्सलियों का शगूफा

पिछले दिनों पुणे पुलिस द्वारा कथित ‘शहरी नक्सलियों ‘ की गिरफ्तारी और नजरबंदी के बाद भारतीय राजनीति के शब्दावली में एक नया शब्द जुड़ गया है. देश का ध्यान फिर भारत के सबसे बड़ी हिंसक आंदोलनों में से एक नक्सली आंदोलन की तरफ गया है. अमरीका के अधिकारिक आकड़ों के अनुसार सीरिया में इस्लमिक स्टेट […]

पिछले दिनों पुणे पुलिस द्वारा कथित ‘शहरी नक्सलियों ‘ की गिरफ्तारी और नजरबंदी के बाद भारतीय राजनीति के शब्दावली में एक नया शब्द जुड़ गया है.
देश का ध्यान फिर भारत के सबसे बड़ी हिंसक आंदोलनों में से एक नक्सली आंदोलन की तरफ गया है. अमरीका के अधिकारिक आकड़ों के अनुसार सीरिया में इस्लमिक स्टेट व अफगानिस्तान में नासुर बने तालिबान का बाद भारत में माओवादी हिंसा में सबसे ज्यादा मौत हुई है. जमींदारी विरोधी आंदोलन कब अपनी राष्ट्रीयता भूल गया, पता ही नहीं चला.
दमन व उत्पीड़न के विरोध में उठा यह आंदोलन विदेशी विचारधारा में आ कर अपना दिशा ही भटक गया. अभिव्यक्ति के आजादी के नाम पर नक्सली स्वत्रंत भारत के अस्तिव को ही झूठा बताते है और यही उग्र वामपंथियों की मौलिक लाइन है. नक्सलियों को चाहिए वे समाज की मुख्याधारा में आयें और सरकार के सामने अपनी बात रखें.
गौरव सिंह निशांत, बीएचयू, वाराणसी

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