प्रभात खबर में पिछले दिनों छपे रवीश कुमार के लेख को पढ़ कर दु:ख तो हुआ, लेकिन कोई आश्चर्य नहीं हुआ. पिछले कई हफ्तों से टीवी के विभिन्न कार्यक्र मों में रवीश की खीज गाहे-बगाहे प्रकट होती रही है. इनकी सोच और चाहत के मुताबिक बिहार में नीतीश कुमार का राजनैतिक कद इतना ऊंचा है कि अपने ही चैनल के ओपिनियन पोल पर इनको विश्वास नहीं हो पाता था और बार-बार ये ओपिनियन पोल के नतीजों को अपनी चाहत के रंग में देखना चाहते दिखे. रवीश कुमार की अपनी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद हो सकती है, लेकिन अपने मनमुताबिक बात जब वह मीडिया में परोसने का काम करते हैं तो जरूर अजीब लगता है.
रवीश को अचरज होता है कि जिन लोगों को गुजरात में नरेंद्र मोदी का विकास दिखता है वे ही बिहार में नीतीश का विकास क्यों नहीं पचा पा रहे हैं. मुङो दु:ख है कि उनकी इस सोच के पीछे उनका पूर्वग्रह बोल रहा है, वरना उनको भी पता है कि नीतीश की इस कथित विकास यात्रा में भाजपा की बराबर की भागीदारी रही है और गहराई में जाकर देखें तो यह भी स्पष्ट होगा कि इनके मंत्रियों में भाजपा के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड बाकियों से अच्छा था.
बिजली कटौती से जूझ रहे बिहार में बिजली उत्पादन बढ़ाना होगा, यह मोटी बात तो नीतीश जानते ही होंगे. लेकिन इस मामले में कुछ करने की फुरसत अगर आज तक वे नहीं निकल पाये तो इसका दोष किसके सिर मढ़ना चाहिए, मुङो नहीं मालूम. पत्रकारिता जगत में इतने अनुभव के बाद रवीश को यह नहीं दिख रहा, ऐसा कोई नहीं मानेगा. नीतीश को आदर्श आचरण के शीर्ष पायदान पर खड़ा करने के प्रयास के पहले सुशील मोदी की उपलब्धियों की उपेक्षा भी जिम्मेदार पत्रकार को शोभा नहीं देती.
शिवशंकर प्रसाद, ई-मेल से