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कांत की गलतबयानी

अहम और जवाबदेह पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी है कि वे कुछ कहने से पहले यह इत्मीनान कर लें कि उनके बयान से मुद्दों की संजीदगी कम न हो और न ही उससे सुननेवाले के सम्मान को ठेस लगे. बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों को देश के पिछड़ेपन का कारण […]

अहम और जवाबदेह पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी है कि वे कुछ कहने से पहले यह इत्मीनान कर लें कि उनके बयान से मुद्दों की संजीदगी कम न हो और न ही उससे सुननेवाले के सम्मान को ठेस लगे. बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों को देश के पिछड़ेपन का कारण बतानेवाले वक्तव्य में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत से इस लिहाज से भारी चूक हुई है.
भारत के विषम विकास की समस्या का विश्लेषण करते हुए इसके मूल कारणों की पहचान करना सबसे जरूरी है. नीति आयोग के प्रमुख अधिकारी होने के नाते आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के समाधान का उत्तरदायित्व उनके ऊपर है.
उन्हें तो यह बताना चाहिए कि प्राकृतिक और मानव संसाधनों से भरे-पूरे राज्य अगर आजादी के सात दशकों तक विभिन्न सूचकांकों में निचले पायदानों पर हैं, तो इसका कारण योजनाओं और नीतियों की विसंगतियां हैं, विकास योजनाओं के लिए समुचित धन के आवंटन का अभाव है तथा संसाधनों की सही भरपाई का न होना है. सर्वाधिक अविकसित 101 जिलों को आगे बढ़ाने की नीति आयोग की एक योजना में इन जिलों को ‘पिछड़ा’ या ‘अविकसित’ नहीं, बल्कि ‘विकास का अभिलाषी’ कहा गया था. यह कहा जाना किसी क्षेत्र के विकास क्षमता पर भरोसा जताना है. यह विशेषण आगे बढ़ने के लिए आमंत्रण और आश्वासन है.
इससे सीख लेते हुए अमिताभ कांत पिछड़े राज्यों को देश के विकास में बाधक बनने का दोषी ठहराने की जगह इनके लिए विशेष प्रयासों की जरूरत पर जोर दे सकते थे. विकास की राह में मौजूद चुनौतियों को पहचानने और विकास की परिकल्पना को नीतियों में ढालने की जिम्मेदारी नीति आयोग की है और इस नाते आयोग से उम्मीद यह है कि वह भारत में गुजरे सालों में अपनाये गये विकास के मॉडल की समीक्षा कर रणनीति बनाये. विभिन्न पंचवर्षीय एवं अन्य योजनाओं में देश के कुछ इलाकों को खेती और उद्योग के मामले में ज्यादा तरजीह मिली. आखिर उत्तर प्रदेश या बिहार के बरक्स पंजाब, हरियाणा या दक्षिणी राज्य कोई रातों-रात तो आगे नहीं बढ़े हैं! अनेक विचारकों के मुताबिक, भारत आंतरिक उपनिवेशीकरण का शिकार है. कई इलाकों के साथ ईमानदार सलूक नहीं हुआ है. यह रवैया आज भी जारी है.
पिछड़े जिले विकास का मॉडल कहे जानेवाले केरल (वायनाड, इडुक्की) और गुजरात (मोरबी, नर्मदा) में भी हैं. विकास की जरूरत सिर्फ पिछड़े राज्यों को ही नहीं, बल्कि समूचे देश को है. विकास के मानदंडों पर देश बांटने की मंशा अच्छी नहीं है.
बेमतलब बयानबाजी से परहेज करते हुए नीति-नियामकों को समावेशी और संतुलित विकास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. उम्मीद है कि अमिताभ कांत अपनी गलती को सुधारते हुए ऐसी योजनाएं बनाने और उन्हें लागू करने को प्राथमिकता देंगे जो देश के हर हिस्से को संपन्न और समृद्ध बनाने के संकल्प को साकार कर सकें.

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