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रोजगार और सुधार
सरकारी क्षेत्र में सबसे ज्यादा नौकरी देने का श्रेय लंबे समय से भारतीय रेलवे को दिया जाता रहा है. खर्चे में कटौती सहित कई कारणों से पिछले कुछ सालों से रेलवे में बड़ी संख्या में निचले स्तर के पद खाली थे और नियुक्ति की प्रक्रिया रुकी हुई थी. इसका असर रेलगाड़ियों के परिचालन और यात्रा […]
सरकारी क्षेत्र में सबसे ज्यादा नौकरी देने का श्रेय लंबे समय से भारतीय रेलवे को दिया जाता रहा है. खर्चे में कटौती सहित कई कारणों से पिछले कुछ सालों से रेलवे में बड़ी संख्या में निचले स्तर के पद खाली थे और नियुक्ति की प्रक्रिया रुकी हुई थी. इसका असर रेलगाड़ियों के परिचालन और यात्रा के दौरान हासिल सुविधा तथा सुरक्षा पर दिख रहा था. सो, जरूरत को महसूस करते हुए रेलवे ने बड़ी संख्या में नौकरियों के लिए आवेदन आमंत्रित किये.
लेकिन, रोजगार के लिए भटक रहे लोगों की संख्या कितनी अधिक है, इसका अंदाजा इस तथ्य से होता है कि रेलवे के अब तक विज्ञापित 90 हजार पदों के लिए कुल 2. 80 करोड़ अभ्यर्थी ऑनलाइन परीक्षा में बैठने जा रहे हैं. मतलब, हर विज्ञापित पद के लिए औसतन 311 व्यक्ति दावेदार हैं. जाहिर है, इनमें से 310 को होड़ से बाहर हो जाना है.
असल मुश्किल यहीं से शुरू होती है- आखिर ये 310 लोग क्या करेंगे? एक जवाब तो यही है कि वे किसी अन्य परीक्षा में शामिल होंगे. लेकिन, अफसोस की बात है कि नौकरी तलाशते हर युवा के लिए ऐसा विकल्प मौजूद नहीं है. कारण बड़ा सीधा है- दुनिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होने के बावजूद अपने देश में रोजगार के समुचित अवसरों का सृजन नहीं हो पा रहा है.
एक आकलन के मुताबिक, देश के श्रम-बाजार में रोजगार के अवसरों की तलाश में हर साल 1.20 करोड़ नये लोग जुड़ते हैं और इन्हें जीविका का सम्मानजनक अवसर मुहैया कराने के लिए सालाना 10 फीसदी बढ़ोतरी जरूरी है. इस समस्या का एक विशेष पक्ष शिक्षित बेरोजगारों से जुड़ता है. देश में सामान्य शिक्षित बेरोजगारों की तादाद अन्य श्रेणी के कामगारों (किसी रोजगार विशेष के लिए प्रशिक्षित) की तुलना में बहुत ज्यादा है.
नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक, सामान्य शैक्षिक पृष्ठभूमि के स्नातक और स्नातकोत्तर व्यक्तियों (रोजगार की उम्र वाले) की संख्या देश में 6.20 करोड़ (साल 2011-12 में) है और इस श्रेणी के व्यक्तियों में बेरोजगारी दर पांच प्रतिशत है.
आश्चर्य नहीं कि सामान्य शैक्षिक पृष्ठभूमि के ज्यादातर लोग पर्याप्त अवसरों के अभाव में अर्द्ध-बेरोजगारी या छिपी हुई बेरोजगारी के हालात से गुजर रहे हैं और एमए या पीएचडी धारक अभ्यर्थियों के बारे में खबर आती है कि उन्होंने चपरासी के पद के लिए आवेदन किया है.
सार्वजनिक सेवाओं के लिए धन की कमी, विनिर्माण-क्षेत्र का अपेक्षित गति से विस्तार न होना और कंपनियों को हासिल कर्ज की कमी जैसी कई वजहों से रोजगार के अवसरों का सृजन बाधित है. आर्थिक सुधार की गति अक्सर राजनीतिक हिसाब-किताब में उलझ जाती है या फिर सरकार की प्राथमिकताओं में वह निचले पायदान पर आ जाती है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुरूप आनेवाले समय में रोजगारोन्मुख शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया जायेगा और ढांचागत सुधारों की प्रक्रिया तेज कर रोजगार सृजन के प्रयास किये जायेंगे.
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