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स्कूलों को बंद करने का षड्यंत्र

छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा साक्षरता की स्थिति में सुधार एवं बच्चों को बालश्रम से बचाने के लिए यह प्रयास किया गया था, लेकिन अब इसके नकारात्मक परिणाम देखने में आ रहे हैं. राज्य सरकारों, जैसे दिल्ली और झारखंड सरकारों ने अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम, 2009 […]

छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा साक्षरता की स्थिति में सुधार एवं बच्चों को बालश्रम से बचाने के लिए यह प्रयास किया गया था, लेकिन अब इसके नकारात्मक परिणाम देखने में आ रहे हैं.
राज्य सरकारों, जैसे दिल्ली और झारखंड सरकारों ने अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम, 2009 के भाग 18 और 19 की आड़ में गैर-सहायता प्राप्त अनेक निजी स्कूलों को बंद कर दिया है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किये गये अनेक अध्ययन यह बताते हैं कि इन छोटे निजी स्कूलों में सरकारी स्कूलों की तुलना में बच्चे दोगुना या तिगुना सीख पाते हैं.
वास्तव में कम फीस वाले निजी स्कूलों को बंद करके सरकार अपनी नाकामी को छिपाना चाहती है.विद्यार्थियों को उन सरकारी स्कूलों का आश्रय लेने के लिए बाध्य करना चाहती है, जहां शिक्षक प्रायः अनुपस्थित रहते हैं. इन सबके बीच सरकार को बच्चों में पढ़ाई के स्तर और देश की उत्पादकता में वृद्धि से कोई लेना-देना नहीं है.
हरिश्चंद्र महतो, इमेल से

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