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मुख्यमंत्रीजी! बेतला को हर हाल में बचाइए

अनुज कुमार सिन्हा बेतला नेशनल पार्क संकट में है. इसका अस्तित्व खतरे में दिखता है. पूरे झारखंड में सिर्फ एक नेशनल पार्क (बेतला) आैर वह भी उपेक्षित. सिर्फ अपने बूते यह नेशनल पार्क झारखंड पर्यटन की तसवीर बदलने के लिए काफी है. हजाराें पर्यटक हर साल बेतला अाते हैं, बाघ-हाथी देखने. अधिकांश काे निराशा हाथ […]

अनुज कुमार सिन्हा

बेतला नेशनल पार्क संकट में है. इसका अस्तित्व खतरे में दिखता है. पूरे झारखंड में सिर्फ एक नेशनल पार्क (बेतला) आैर वह भी उपेक्षित. सिर्फ अपने बूते यह नेशनल पार्क झारखंड पर्यटन की तसवीर बदलने के लिए काफी है. हजाराें पर्यटक हर साल बेतला अाते हैं, बाघ-हाथी देखने. अधिकांश काे निराशा हाथ लगती है. किस्मत अच्छी हाे ताे जंगली भैंसा-हाथी दिखेंगे, वरना बंदर-हिरण देख कर संताेष करना हाेगा. ऐसी बात नहीं है कि बेतला ऐसा ही था. दरअसल यह बेतला पार्क पलामू टाइगर रिजर्व का हिस्सा है.

टाइगर रिजर्व ताे 1032 वर्ग किलाेमीटर में फैला है जिसमें बेतला का हिस्सा 226 वर्ग किलाेमीटर है. जिन दिनाें यानी 1974 में जब पलामू टाइगर रिजर्व का गठन हुआ, यहां बाघाें की संख्या 22 थी. आज स्थिति यह है कि साल में एक या दाे बार काेई बाघ या ताे कहीं दिखता है या कैमरे में कैच हाेता है. ऐसे अभी चार बाघ हाेने का वन विभाग दावा करता है.

अगर पर्यटक बेतला आयें, जानवर नहीं दिखे, बाघ-हाथी नहीं दिखे ताे काैन दुबारा आयेगा यहां? शिकारियाें ने यह हालात पैदा कर दिया है. वन विभाग के पास गार्ड तक नहीं हैं, जाे इन जानवराें काे शिकारियाें से बचाये. साधन का अभाव है. वन विभाग के एक सीनियर अफसर की टिप्पणी है-जिन जानवराें ने अपने काे बचा लिया, वे ही बच पाये हैं. यह उस अधिकारी की पीड़ा भी है. हालात यह है कि अगर अविलंब बेतला काे बचाने के लिए सरकार आगे नहीं आती है, ताे इसका भी वही हाल हाेगा जाे हजारीबाग अभ्यारण्य का हुआ है. खाेजने से सियार भी नहीं दिखेगा. अगर ऐसा हाेता है ताे यह राज्य के लिए दुर्भाग्य हाेगा. पर्यटन के दृष्टिकाेण से आैर पर्यावरण के दृष्टिकाेण से भी.

यह हालात क्याें है? क्याेंकि टाइगर रिजर्व प्राथमिकता में है ही नहीं. बेतला के पास से यानी टाइगर रिजर्व के बीच से रेलवे लाइन गुजरती है. यह भी सही है कि रेलवे लाइन आज से नहीं है, टाइगर रिजर्व के बनने के बहुत पहले से है. प्रसिद्ध साहित्यकार राधाकृष्ण ने 1931 में ट्रेन से इस क्षेत्र की यात्रा की थी, जिसका वर्णन उन्हाेंने एक यात्रा-एक स्मृति में किया है. इसमें जिक्र है कि कैसे इस क्षेत्र में उन दिनाें बाघ बेराेक-टाेक घूमते थे. आज स्थिति उलट है. बेतला के बीच से सड़क बना दी गयी है. अब ताे इसे एनएच का दर्जा मिल चुका है. गारू-महुआडांड सड़क. रिजर्व क्षेत्र में अमूमन ऐसी सड़कें बनती नहीं है. अगर ग्रामीणाें के लिए बनानी भी है ताे सिर्फ उतनी चाैड़ी, जिससे काम हाे जाये. एनएच बनने से दिन भर ट्रक-बसाें का आवागमन हाेगा. फिर कहां बचेगा पार्क, कहां रहेगा टाइगर रिजर्व. अगर सड़क बनानी ही है ताे बेतला के किनारे-किनारे बनाइए जिससे जानवराें पर इसका कम से कम असर पड़े. पूरा टाइगर रिजर्व रेलवे ट्रैक आैर एनएच के कारण चार भागाें में बंट गया है. एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जानवर कैसे जायेंगे? बाधा है. नक्सलियाें पर अंकुश लगाने के लिए सीआरपीएफ कैंप बन गये हैं. गाेली-बारी भी हाेती है. इन सब कारणाें से जानवर दूर हाेते चले गये हैं. जानवर करीब ताे आते ही नहीं हैं.

जाे थे वे भी मारे गये. सरकार काे कुछ नीतिगत फैसले लेने हाेंगे. पहले ताे यह तय करना हाेगा कि बेतला काे बचाना है या ऐसे ही खत्म हाेने देना है. अगर बचाना है, ताे इस पलामू टाइगर रिजर्व के बीच के उन आठ गांवाें (कुजरूम, लातू, रमणदाग, पंडरा, चैबीर, तेनार, घुटवा आदि) काे खाली कराना हाेगा, यहां के लाेगाें काे कहीं आैर बसाना हाेगा. सहमति से. जमीन लेना, किसी काे दूसरी जगह बसाने का काम आसान नहीं है लेकिन अगर सही तरीके से पुनर्वास हाे, यहां के लाेगाें काे इसके लिए तैयार किया जा सकता है. अंगरेजाें ने इन गांवाें काे बसाया था ताकि अपने उपयाेग के लिए वे जंगलाें की कटाई कर सकें. यहां के लाेगाें के पास वैसे भी राेजगार नहीं है. पर्यटक की संख्या अगर बढ़ेगी, इनके लिए भी अवसर बढ़ेंगे. सच यह है कि बगैर लाेगाें की सहभागिता के बेतला काे बचाया नहीं जा सकता.

हां, कुछ बड़े फैसले करने हाेंगे. अगर बेतला (टाइगर रिजर्व) की इस स्थिति के लिए रेलवे लाइन एक कारण है, ताे इसका रास्ता निकाला जा सकता है. इसके लिए जुनूनी अफसर चाहिए. सरकार का पूरा सहयाेग चाहिए. तभी कुछ हाे सकता है. दिन भर में साै से ज्यादा ट्रेन-मालगाड़ी गुजरती है. ऐसे में बाघ-हाथी या दूसरे जानवर वहां कैसे रहेंगे. सिर्फ 15 किलाेमीटर ट्रैक ही रिजर्व क्षेत्र में है. इसे किनारे किया जा सकता है. लेकिन यह तभी संभव हाेगा जब बेतला के महत्व काे राज्य समझे. याद कीजिये, देश के दूसरे नेशनल पार्क कैसे अपने राज्य काे अच्छा खासा पैसा दे रहे हैं. बेतला काे भी गिर या जिम कार्बेट जैसा बनाया जा सकता है.

असंभव नहीं है लेकिन इच्छाशक्ति दिखानी हाेगी. जानवराें काे रहने लायक इसे बनाना हाेगा. ऐसा माहाैल बनाना हाेगा ताकि जानवर बेखाैफ घूम सकें. हाल में कुछ प्रयास हुए हैं. लेकिन वह पर्याप्त नहीं है. साधन चाहिए, सुविधा चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण, इसमें लाेगाें की भागीदारी चाहिए. वहां रहनेवाले लाेगाें का साथ चाहिए. वहां आसपास रहनेवालाें काे यह समझाना हाेगा कि जानवराें काे बचाने में ही उनका भी भला है. बाहरी शिकारियाें से जानवराें काे बचाने की जिम्मेवारी उनकी भी है. थाेड़ा प्रयास हाे जाये, ताे इसी बेतला का भविष्य संवर सकता है वरना एक समय आयेगा जब बेतला पार्क जाइए, मेन गेट पर पिंजड़ा में बंद बाघ देखिए, पिंजड़ा में बंद भैंसा देखिए, पिंजड़ा में ही हिरण देखिए आैर लाैट आइए.

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