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ओडिशा में झामुमो ने खोयी राजनीतिक पर वापस पैठ पाने को अब खेला आमको-सिमको शहीद कार्ड

झामुमो के अनुसार 25 अप्रैल, 1939 को आमको-सिमको गोलीकांड में गांगपुर स्टेट समेत छोटानागपुर स्टेट के आदिवासी भी शामिल थे. आजादी के बाद जहां गांगपुर स्टेट ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले का हिस्सा है, वहीं छोटानागपुर स्टेट झारखंड का हिस्सा है.

आदिवासी अस्मिता व स्वाभिमान की लड़ाई लड़कर आदिवासी बहुल सुंदरगढ़ जिले में अपनी पुख्ता पहचान बनाने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के समक्ष अब राजनीतिक पहचान का संकट उत्पन्न हो गया है. ओडिशा में 2024 में आम चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव होना है. जिससे झामुमो एक बार फिर से अपनी राजनीतिक पहचान बनाने तथा पैठ जमाने का प्रयास कर रही है. लेकिन अपनी इस राजनीतिक पहचान का संकट दूर करने के लिए झामुमो आमको-सिमको के शहीदों की मोहताज बन गयी है.

बीजद का दामन थाम चुके हैं कद्दावर झामुमो नेता

सुंदरगढ़ जिले में 90 के दशक में झामुमो की तूती बोलती थी. इस दौरान झामुमो ने सुंदरगढ़ जिला परिषद पर कब्जा जमाया था. तब झामुमो की दिवंगत नेता हर्षिता लुगून जिला परिषद की अध्यक्ष बनी थीं. इसके अलावा जार्ज तिर्की, हालु मुंडारी, मानसिद एक्का, निहार सुरीन जैसे झामुमो नेता विधायक भी बने थे. लेकिन अब इनमें से कोई भी नेता झामुमो में नहीं है. इन नेताओं में से जार्ज तिर्की को छोडकर हालु मुंडारी, निहार सुरीन, मखलू एक्का, सुशील लकड़ा व कई अन्य नेता बीजद का दामन थाम चुके हैं. जिससे अब झामुमो के समर्थक भी दिशाहीन हो चुके हैं. झामुमो का वर्तमान नेतृत्व इधर-उधर भटके कैडरों को वापस लाने में अब तक विफल रहा है. राजनीतिक समालोचकों का मानना है कि संभवत: इसी वजह से झामुमो ने आमको-सिमको के शहीदों को स्वाधीनता सेनानी का दर्जा देने का कार्ड खेला है.

आमको-सिमको गोलीकांड में छोटानागपुर के आदिवासी भी थे शामिल

झामुमो के अनुसार 25 अप्रैल, 1939 को आमको-सिमको गोलीकांड में गांगपुर स्टेट समेत छोटानागपुर स्टेट के आदिवासी भी शामिल थे. आजादी के बाद जहां गांगपुर स्टेट ओडिशा के सुंदरगढ़ जिले का हिस्सा है, वहीं छोटानागपुर स्टेट झारखंड का हिस्सा है. जहां के मुख्यमंत्री झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत सोरेन हैं, जबकि उनकी बहन अंजनी सोरेन ओडिशा प्रदेश झामुमो अध्यक्ष हैं. जिससे झारखंड की सत्ता में रहते हुए आमको-सिमको के शहीदों को स्वाधीनता सेनानी का दर्जा देने को लेकर उनकी ओर से अब तक क्या पहल की गयी है, इसे भी झामुमो को जनता के सामने रखना चाहिए, ऐसा राजनीतिक समालोचकों का मानना है.

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2003-04 शिबू सोरेन भी उठा चुके हैं मांग

आमको-सिमको के शहीदों को स्वाधीनता सेनानी का दर्जा देने की मांग झामुमो के संस्थापक व दिशोम गुरु शिबू सोरेन भी उठा चुके हैं. वर्ष 2003-04 में किसी कार्यक्रम में शिरकत करने नुआगांव ब्लॉक अंचल में पहुंचे दिशोम गुरु ने यह मांग जोरदार तरीके से उठायी थी. लेकिन दो दशक तक इस मांग को लेकर झामुमो की किसी तरह की गतिविधि नजर नहीं आयी थी. अब 2024 का चुनाव नजदीक है, ताे झामुमो की ओर से इस मुद्दे को पुनर्जीवित करने के पीछे उनकी राजनीतिक मंशा साफ नजर आ रही है.

शहीद निर्मल मुंडा की स्मृति जीवित रखने में झामुमो विफल

आमको-सिमको गोलीकांड के नेता निर्मल मुंडा की स्मृति को जीवित रखने तथा उन्हें उचित सम्मान प्रदान करने में भी झामुमो अब तक विफल रहा है. गत 24 जनवरी, 2014 को आरएसपी के तत्कालीन सीइओ गौरीशंकर प्रसाद ने इस्पात हाट का लोकार्पण किया था. इस दौरान इस मार्केट के पास झामुमो की ओर शहीद निर्मल मुंडा इस्पात हाट का बोर्ड लगाकर सीइओ के हाथों इसका लोकार्पण करावाया गया था. लेकिन निर्मल मुंडा का यह बोर्ड अब जर्जर हालत में है. झामुमो की ओर से अब तक इसकी सुध नहीं ली गयी है.

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