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ट्रंप का ट्रेड वार

बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपना पहला साल पूरा कर चुके हैं और आर्थिक संरक्षणवाद की उनकी नीति भी आकार लेने लगी है. चीन और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह अच्छी खबर नहीं है. वाशिंग मशीनों और सोलर पैनलों के आयात पर वे शुल्क बढ़ा चुके हैं. कनाडा और मैक्सिको के अलावा सभी देशों से […]

बतौर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपना पहला साल पूरा कर चुके हैं और आर्थिक संरक्षणवाद की उनकी नीति भी आकार लेने लगी है. चीन और भारत जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह अच्छी खबर नहीं है. वाशिंग मशीनों और सोलर पैनलों के आयात पर वे शुल्क बढ़ा चुके हैं. कनाडा और मैक्सिको के अलावा सभी देशों से इस्पात और अल्युमिनियम के आयात पर शुल्क लगाने के फैसले के बाद ट्रंप की नजर अब मोटरसाइकिलों और कारों के आयात पर है.

उनका कहना है कि जो देश अमेरिकी उत्पादों पर जितना शुल्क लगाते हैं, उन देशों के आयात पर वे भी उसी दर से शुल्क लगायेंगे. इस संदर्भ में वे चीन और भारत का उल्लेख बार-बार करते रहे हैं. वर्ष 2017 में चीन के साथ व्यापार में अमेरिका को 375.2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ था, यानी अमेरिका ने चीन से अधिक उत्पाद आयातित किये थे. भारत के साथ यह व्यापार घाटा 24 बिलियन डॉलर के आसपास है. बीते साल वैश्विक व्यापार में अमेरिका का कुल घाटा 2016 की तुलना में 12.1 फीसदी बढ़कर 566 बिलियन डॉलर हो गया है, जो 2008 के बाद सबसे अधिक है.

ट्रंप प्रशासन आयात और निर्यात के बीच की बढ़ती खाई को अमेरिकी विनिर्माण में गिरावट तथा विदेशी वस्तुओं पर चिंताजनक निर्भरता के रूप में चिह्नित करता है. उल्लेखनीय है कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की संभावनाओं तथा ट्रंप प्रशासन द्वारा कॉरपोरेट करों में कमी के कारण दुनियाभर के शेयर बाजारों में बीते दिनों भारी गिरावट आयी थी. ऐसा अमेरिकी वित्तीय निवेशकों द्वारा धन को वापस अमेरिका में लगाने के फैसले की वजह से हुआ था. स्टॉक मार्केट में अभी भी अस्थिरता है.

चूंकि कूटनीति तथा वाणिज्य का मौजूदा संबंध चोली-दामन का है, तो इस स्थिति में महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं को बातचीत करनी चाहिए. चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने सही ही कहा है कि इतिहास में ट्रेड वार से किसी समस्या का समाधान नहीं हुआ है. भारत को भी बहुत जल्दी ही इस मुद्दे पर अपनी समझ तैयार कर लेनी होगी, क्योंकि ट्रंप का ट्रेड वार सिर्फ इस्पात या मोटरसाइकिल तक नहीं रुकेगा, बल्कि जल्दी ही बौद्धिक संपदा को लेकर तनातनी होगी. मजबूत अर्थव्यवस्था होने के नाते विनिर्माण, तकनीक और निवेश के जरिये भारत और चीन ट्रंप के रवैये को नुकसान के साथ बर्दाश्त करने की क्षमता रखते हैं. परंतु, बौद्धिक संपदा पर खींचतान से दोनों देशों को बहुत दिक्कत होगी. चीन की तरह भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने अनेक चुनौतियां पहले से ही हैं और ट्रेड वार का झटका भारी पड़ सकता है.

वैश्वीकरण के हमारे युग में आर्थिक गतिविधियों का भी वैश्वीकरण हुआ है. ट्रंप का संरक्षणवाद जारी रहा, तो पूरी दुनिया को जल्दी ही एक और आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ सकता है. भारत को वर्तमान स्थिति के आधार पर भविष्य के लिए भी रूप-रेखा बनाने पर विचार करना चाहिए.

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