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ऐसे करें मां सरस्‍वती की आराधना, ये है मां का प्रभावशाली मंत्र

भगवती सरस्वती समस्त विद्याओं, कलाओं तथा रचना-धर्मिताओं की अधिष्ठात्री हैं. इनकी साधना से अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है. सुबह उठ कर नित्य कृत्य से निवृत्त हो शुद्ध वस्त्र धारण करें. पूजा-सामग्री संकलित कर पूजा स्थान में बैठ जाएं. पुस्तक, कलम को आसन पर रखें. उसके आगे आटा, रोली, अबीर, हल्दी चूर्ण से षट्कोण […]

भगवती सरस्वती समस्त विद्याओं, कलाओं तथा रचना-धर्मिताओं की अधिष्ठात्री हैं. इनकी साधना से अज्ञान का अंधकार दूर हो जाता है. सुबह उठ कर नित्य कृत्य से निवृत्त हो शुद्ध वस्त्र धारण करें. पूजा-सामग्री संकलित कर पूजा स्थान में बैठ जाएं.

पुस्तक, कलम को आसन पर रखें. उसके आगे आटा, रोली, अबीर, हल्दी चूर्ण से षट्कोण बना लें और बायीं ओर घी का रक्षादीप जला लें. अब शुद्ध जल अपने पर, आसन पर एवं पूजा-सामग्री पर छोड़कर शुद्धि कर तिलक लगा लें. हाथ में यथासंभव सुपारी, फूल, अक्षत, रोली, पैसा और जल लेकर संकल्प करें-

‘ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः नमः परमात्मने अद्य माघ-शुक्ल-पंचम्यां सोमवारे …गोत्रे उत्पन्नः/उत्पन्ना अहं …नामाहं/नाम्नी अहं श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फल-प्राप्तये सरस्वती-प्रीतये च यथाशक्ति षड्देवता-पूजन-पूर्वकं सरस्वत्याः, लक्ष्म्याः, काम-वसन्तयोःच पूजनं करिष्ये’

इतना बोलकर षट्कोण के पास संकल्प के जलादि को रख दें. अब षट्कोण के छहों कोष्ठको में क्रमशः ‘ऊँ गं गणपतये नमः, ऊँ सूर्याय नमः, ऊँ अग्नये नमः, ऊँ विष्णवे नमः, ऊँ महेश्वराय नमः, ऊँ शिवायै नमः’ कहकर क्रमशः गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव एवं पार्वती का जल, रोली, फूल, धूप, दीप, प्रसाद चढ़ाकर पंचोपचार से पूजन करें व मां का ध्यान करें. यदि प्रतिमा-पूजन करना हो तो कलश के साथ षोडश-मातृका एवं नवग्रह की पूजा कर सरस्वत्यादि की पूजा करें.

इस दिन पूजा में मां सरस्वती को सफेद या पीले पुष्प, सफेद चंदन आदि का अर्पण करना चाहिए. प्रसाद के रूप में दही, हलवा अथवा मिश्री का प्रयोग करना चाहिए. साथ ही केसर मिले हुए मिश्री का भोग लगाना सर्वोत्तम होगा.

* माता सरस्वती का प्रभावशाली मंत्र "ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः" का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए.

* सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।

हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

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